India News (इंडिया न्यूज़) UP Politics Martand Singh, Lucknow : UP Politics देश में 2024 में लोकसभा का चुनाव होना है । लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सभी सियासी दल अपने अपने हिसाब से रणनीतियां तैयार कर रहे हैं ।
सत्ता पक्ष जहां अपने कुनबे एनडीए को मजबूत कर रहा है वहीं विपक्ष इंडिया के माध्यम से सत्तापक्ष को घेरने की कवायद कर रहा है। सियासी गलियारों में एक कहावत प्रचलित है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है।
उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं और ऐसे में उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटों में लगभग हर सीट पर दलित समाज का ठीक-ठाक प्रभाव है। यही वजह है कि हर चुनाव में सभी सियासी दल दलित वोटों को अपने पाले में करने की कोशिश में रहते हैं।
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012 के बाद लगातार बसपा का ग्राफ गिरता रहा। बहुजन समाज पार्टी के गिरते ग्राफ की वजह से दलित मतदाता नए विकल्प की तलाश 2012 से कर रहे हैं। 2012 के विधानसभा के चुनाव में जहां दलित वोट बैंक में सपा की ओर से शिफ्ट हुआ था।
वही 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जब 73 सीटों पर जीत दर्ज की तब दलित समाज का वोट शेयर बीजेपी के भी पक्ष में देखने को मिला। 2017 में बीजेपी ने इसी प्रदर्शन को दोहराते हुए विधानसभा के चुनाव में 300 से ज्यादा सीटें जीती और इन 300 सीटों में बीजेपी ने सुरक्षित सीटों में भी 65 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की।
2019 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा के वोट बैंक दलित समाज के मतदाता बीजेपी की ओर बढ़ी संख्या में मतदान करते दिखे। ऐसा ही कुछ 2022 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला। जहां भारतीय जनता पार्टी ने 80 विधानसभा सीटें जो दलित समाज के लिए सुरक्षित हैं उनमें से करीब 70 सीटों पर जीत दर्ज की।
भाजपा को उम्मीद है कि बसपा के गिरते राजनीतिक ग्राफ की वजह से दलित समाज पिछले चार चुनाव की तरह ही भाजपा के साथ आगे भी बरकरार रहेगा। इसके लिए बकायदा सत्तापक्ष समय-समय पर नई कवायद करता रहता है।
हालांकि सभी सियासी दलों के अपने दावे है हर कोई दलितों को अपने पाले में लाना चाहता है क्योंकि अगर लोकसभा के चुनाव में यूपी में बेहतर प्रदर्शन करना है तो दलित समाज का मतदान करना सभी राजनैतिक दलों के लिए बेहद जरूरी हो जाता है ।
यूपी में प्रमुख विपक्षी दल के रूप में समाजवादी पार्टी इन दिनों दलितों को रिझाने में लगी है। विधानसभा के चुनाव में भगवान परशुराम की प्रतिमा का अनावरण करने वाले अखिलेश यादव एक वर्ष के भीतर ही परशुराम से सीधा काशीराम पर आ गए हैं और इसकी वजह रही दलित मतदाताओं का भाजपा को वोट करना।
आजाद समाज पार्टी के चीफ चंद्रशेखर आजाद को नया सियासी खेवनहार बनाकर अखिलेश यादव दलित समाज के बीच में समाजवादी पार्टी की साइकिल दौड़ाना चाहते हैं। हालांकि दलित समाज आज भी समाजवादी पार्टी से नाराज बताया जाता है
क्योंकि एक जमाने में जब सपा बसपा का यूपी में राजनीतिक वर्चस्व था तो बसपा यह आरोप लगाती थी कि सपा सरकार में दलितों का उत्पीड़न होता था। हालांकि सपा का मानना है कि भाजपा सरकार से त्रस्त होकर दलित पिछड़े इस बार सपा को जिताने का काम करेंगे।
वहीं केंद्र की राजनीति की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के साथ दलित मतदाता कई राज्यों के चुनाव में जुड़ता हुआ दिखा। कर्नाटक में भी दलितों ने कांग्रेस को जिताने का काम किया। कांग्रेस को भी दलित समाज का समर्थन ठीक-ठाक मिलता है।
ऐसे में कांग्रेस का दावा है कि पिछले 9 वर्षों में केंद्र सरकार के कार्यकाल में सबसे ज्यादा उत्पीड़न दलित समाज का हुआ है। कांग्रेस का दावा है कि दलित समाज पर कांग्रेस के पक्ष में मतदान करेगा। किसी दौर में कांग्रेस पार्टी का दलित मतदाता पारंपरिक मोटर माना जाता था।
लेकिन काशीराम के बहुजन मिशन के बाद दलित कांग्रेस से दूर होकर बसपा से जुड़ा । इस बार कांग्रेस को उम्मीद है कि लोकसभा के चुनाव में दलित कांग्रेस के पक्ष में मतदान करेंगे। भारतीय जनता पार्टी का मानना है कि सरकार की योजनाओं में दलितों को प्राथमिकता दी गई।
सबका साथ सबका विकास के तहत विकास किया गया, हर समाज को बराबर का हक दिया गया। ऐसे में दलित समाज भाजपा के साथ है और आने वाले समय में भाजपा को मतदान करेगा।
जाहिर है पिछले 4 चुनाव में दलितों में बड़ी सेंधमारी करने वाली बीजेपी इस बार बसपा के गिरते ग्राफ की वजह से दलितों को पूरी तरीके से अपने पाले में लाना चाहती है। भाजपा का दावा है कि दलित मतदाता काम के आधार पर भाजपा को मतदान करेंगे ।
जाहिर है 2024 में अगर सरकार बनाना है तो दलित मतदाताओं को रिझाना है और इसके लिए सभी सियासी दलों ने बिसात बिछानी शुरू कर दी है । अब देखने वाली बात होगी कि यूपी के तीन प्रमुख दल सपा कांग्रेस और भाजपा 2024 के लोकसभा के चुनाव में दलितों को अपने पाले में कैसे ले जाते हैं ।
क्योंकि बसपा के गिरते राजनीतिक ग्राफ की वजह से दलित मतदाता नए विकल्प की ओर रुख कर सकते हैं। दलित मतदाताओं के मन में इस समय पशोपेश की स्थिति है दलित मतदाता 2024 के पहले बड़ा उलटफेर कर सकते हैं। अब देखने वाली बात होगी कि दलित मतदाता किस के पाले में जाते हैं और किसकी सरकार बनाते हैं।
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