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Chandrayaan-3: 23 अगस्त 1966 इतिहास के पन्नों में दर्ज है आज का दिन, जब चांद की कक्षा से धरती की पहली फोटो भेजी गई

India News (इंडिया न्यूज़), Chandrayaan-3: आज का दिन बेहद ही खास है क्योंकि आज के दिन भारत एक नया इतिहास रचने जा रहा है। मतलब आज चंद्रयान-3 चंद्रमा पर शाम के समय लैंडिंग करने वाला है ऐसे में लैंडिंग सुरक्षित रहे और देश का नाम पूरे विश्व में विख्यात हो उसको लेकर जगह-जगह हवन यज्ञ किया जा रहा है। सुबह से ही हवन चल रहा है साथ ही रामायण पाठ चल रहा है। चाहे महिलाएं हो चाहे पुरुष सभी इस हवन और रामायण पाठ में हिस्सा ले रहे हैं। सुबह से ही यह लोग पूजा पाठ कर रहे हैं रामायण पाठ कर रहे हैं साथ ही हवन कर रहे हैं। इनका कहना है कि जब तक चंद्रयान की लैंडिंग नहीं हो जाती यह पूजा पाठ हवन रामायण पाठ यूं ही चलता रहेगा। यह ऐतिहासिक दिन है और दिन का गवाह हर एक हिंदुस्तानी बनना चाहता है।

23 अगस्त की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज

लेकिन देश-दुनिया के इतिहास में 23 अगस्त की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धि के तौर पर इतिहास के पन्नों में चस्पा है। दरअसल 1960 के दशक के शुरुआती सालों में अमेरिका ने अपोलो मिशन लॉन्च किया था। इस मिशन का उद्देश्य चांद पर मानव को पहुंचाना था। मगर उस समय वैज्ञानिकों के पास चांद की सतह की विस्तृत फोटो नहीं थी। अपोलो मिशन के लिए चांद की सतह की फोटो जरूरी थी, जिसके अध्ययन से यह पता लगाया जा सके कि कहां स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग कराई जा सकती है।

सूज़र उपग्रह ने मून ऑर्बिट से धरती की पहली तस्वीर ली

1966 में आज ही के दिन, 23 अगस्त को, सूज़र उपग्रह ने मून ऑर्बिट से धरती की पहली तस्वीर ली थी। यह एक महत्वपूर्ण मोमेंट था जो अंतरिक्ष अनुसंधान में प्रारंभिक कदम को प्रकट करता है। इस पहले तस्वीर के बाद, अन्य अंतरिक्ष मिशनों ने भी चंद्रमा की सुन्दर छवियों को प्रस्तुत किया है और हमारे ज्ञान को बढ़ावा दिया है। इसके बाद के दशकों में, चंद्रमा की गहराईयों के बारे में और भी अधिक जानकारी हासिल की गई है, जैसे कि चंद्रमा के सतह पर पानी की मौजूदगी का प्रमाण और उसकी भूस्खलनीयता की जांच।

आजकल भी, अंतरिक्ष एजेंसियाँ चंद्रमा के और अधिक गहराईयों तक पहुंचने के लिए योजनाएं बना रही हैं, जिससे हम इस आकारणीय विशेषग्य को और भी अधिक समझ सकें। इसके साथ ही, इंसानी अंतरिक्ष यातायात में भी तेजी से विकास हो रहा है। नासा के आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत, मनुष्यों को फिर से चंद्रमा पर भेजने की योजना बनाई गई है, जिससे हम उसके सतह की और भी अधिक जानकारी हासिल कर सकें।

10 अगस्त, 1966 को ऑर्बिटर-1 लॉन्च किया

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 10 अगस्त, 1966 को ऑर्बिटर-1 लॉन्च किया। इस स्पेसक्राफ्ट में एक मेन इंजन, चार सोलर प्लेट और 68 किलोग्राम के कोडेक इमेजिंग सिस्टम को फिट किया गया था। इसका काम अलग-अलग कोण से चांद की सतह की फोटो लेना था। चांद की कक्षा में पहुंचने वाला यह दुनिया का पहला स्पेसक्राफ्ट था।स्पेसक्राफ्ट का लॉन्च सफल रहा और 14 अगस्त को स्पेसक्राफ्ट चांद की कक्षा में पहुंच गया। 23 अगस्त, 1966 को इस स्पेसक्राफ्ट ने धरती की भी एक फोटो भेजी। इसे चांद की ऑर्बिट से ली गई धरती की पहली फोटो कहा जाता है। 28 अगस्त तक स्पेसक्राफ्ट ने चांद की सतह की कुल 205 फोटो भेजी। 29 अक्टूबर को चांद की सतह से टकराकर ऑर्बिटर-1 नष्ट हो गया।

नए दरबारों तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

इसी तरह, अंतरिक्ष अनुसंधान ने मानवता की ज्ञान और सृजनात्मकता को नए दरबारों तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और आने वाले दिनों में इसका और भी बड़ा योगदान होने की संभावना है। अंतरिक्ष अनुसंधान के साथ हम अपने ब्रह्मांड के रहस्यों की ओर बढ़ रहे हैं, जो हमारे समय की सबसे उत्कृष्ट वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियों को प्रकट करता है। अग्रसर अनुसंधान से हम स्थापित सत्रारूपों को छोड़कर नए दिमाग़ी और ताकनीकी संभावनाओं की खोज कर रहे हैं, जिससे अब तक की मानवता की सबसे बड़ी उपलब्धियों की प्राप्ति हो सके।

आने वाले दशकों में, हम नए अद्वितीय अन्तरिक्ष मिशनों, जैसे कि मंगल और यूरोपा की तरफ देख सकते हैं, जिनसे हम अपनी समझ को और भी बढ़ावा देने में सफल हो सकते हैं। इससे हमारी विज्ञानिक समझ को नए परिप्रेक्ष्यों में ले जाने का सुनहरा अवसर है, जो हमारे समाज और पूरे मानवता के लिए महत्वपूर्ण है।

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Aarti Bisht

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