India News (इंडिया न्यूज़), Sushil Kumar, CM Yogi Adityanath: सीएम योगी का गोरक्षपीठाधीश्वर का सफ़र, अजय विस्ट से मंदिर का उतराधिकारी और फिर गोरक्षपीठाधीश्वर का सफ़र और फिर मुख्यमंत्री का सफ़र, जी हां गोरखपुर में स्थित गोरखनाथ मंदिर नाथ सम्प्रदाय का एक मात्र मंदिर विश्व विख्यात है, और इस मंदिर के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ है, पंचो और साधू संतो के सर्व संपत्ति से 14 सितम्बर 2014को योगी आदित्यनाथ को गोरक्षपीठाधीश्वर बनाया गया था, और फिर इनकी ख्याति दिनों दिन बढती गई, देखिये इंडिया न्यूज़ पर कैसे बने अजय विस्ट पीठाधीश्वर |
ब्रह्मलीन महंत, गोरक्षपीठाधीश्वर अवेद्यनाथ जैसे प्रभावशाली संत, जो सभी के दिलो में बसते थे। ‘बड़े महाराज’ यानी ब्रह्मलीन महंथ अवैद्यनाथ के करीब दो दशक के संरक्षण के बाद 14 सितंबर 2014 को उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी से पीठाधीश्वर बने थे। नाथपंथ की सबसे बड़ी माने जाने वाली इस पीठ पर योगी के गुरु महंत अवेद्यनाथ 34 साल तक और उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ 45 वर्ष तक पीठाधीश्वर रहे। 12 सितंबर 2014 को महंत अवेद्यनाथ ब्रह्मलीन हुए थे। 14 सितंबर को उनको समाधि देने के पहले नाथ पंथ और सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार योगी का अभिषेक किया गया। उसके बाद पंचों (रेवती रमण दास, पीडी जैन,अरुणेश शाही, धर्मेंद्र वर्मा और मारकंडेय यादव) ने उनको पीठाधीश्वर का आसन ग्रहण कराया।
पिछले 100 साल में धर्म, समाज और राजनीति के हर क्षेत्र में इस पीठ के पीठाधीश्वरों ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। यह पूर्वांचल की अध्यक्षीय पीठ है, श्रद्धा का ऐसा केंद्र जिसके आगे बड़े-बड़े लोग नतमस्तक होते रहे हैं। पीठ जिसके सिर पर हाथ रख दे वह सांसद, मेयर, चेयरमैन, एमएलसी और विधायक बन जाता है। इतिहास इसका गवाह है, यह पीठ लोक का धड़कन और विश्वास है, संकट का साथी है, भटकने पर मार्गदर्शक और हताशा में उत्साह का संचार करने वाली पीठ है। पीठ की सामाजिक समरसता की बेहद मजबूत और गहरी जड़ें सारे जातीय समीकरणों और दलीय समीकरणों पर भारी पड़ती हैं।
पीठ का संदेश या सुझाव आदेश सरीखा होता है। गोरक्षपीठ का विस्तार केवल गोरखपुर या पूर्वांचल तक नहीं है। इसका विस्तार देश में उत्तराखंड से मीनाक्षीपुरम तक तथा देश से बाहर नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यामांर से पाकिस्तान (पेशावर) तक है। पांच देशों एवं देश के दस राज्यों में नाथपंथ से जुड़े पांच हजार से अधिक मठ- मन्दिरों के किसी भी विवाद पर अंतिम निर्णय गोरक्षपीठ का ही होता है |
शिक्षा के नाम पर इस पीठ ने बड़े काम किये है, और यही वजह है, की इस पीठ ने शिक्षा का अलख जगाया था। ये भी कहा जाता है, कि जब कही किसी भी मैथ मंदिर में कोई विवाद होता है, तो उसका निर्णय इसी पीठ से होता है। गोरक्षपीठ समाज से छुआछूत, जाति-पात और अंधविश्वास का विरोध करने वाली एक ताकत के रूप में है। समाज में शिक्षा की अलख जगाने वाली ज्योति है। 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना और वर्तमान में इससे संबद्ध प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय तक के 50 से अधिक संस्थान इसके प्रमाण हैं। यही नहीं, यह पीठ अशक्तों के सस्ते उपचार के लिए नए दरवाजे खोलने वाली संस्था और गोवंश की रक्षक भी है |
गोरखपुर में इस पीठ को लेकर पुरे देश और विदेश में बाते होती है, और शायद यही वजह है, कि इस पीठ की बात आते ही बड़े बड़े लोग नतमस्तक हो जाते है। इस पीठ पर सर झुकाते है, ऐसे में योगी आदित्यनाथ उतराधिकारी के बाद पीठाधीश्वर बन गए और नाथ सम्प्रदाय के सबसे बड़े नेता के रूप में सभी नाथ सम्प्रदाय से जुड़े साधू संतो के लिए पूजनीय भी।