Jhanda Ji Mela History: दून में ऐतिहासिक झंडे जी मेले का शुभारंभ, अटूट आस्था की वजह है झंडे जी मेले का ये इतिहास

इंडिया न्यूज: (Inauguration of historic Jhanda Ji Mela in Doon) सिखों के सातवें गुरु हरराय महाराज जी के बड़े पुत्र गुरु राम राय महाराज जी के देहरादून आगमन के बाद हर साल गुरु रामराय महाराज जी के सम्मान में मनाया जाने वाले झंडे मेले का शुभारंभ हो गया है। 12 मार्च से 30 मार्च तक चलने वाले इस ऐतिहासिक झंडे मेले के लिए पुलिस ने कड़े सुरक्षा इंतजाम किए हैं।

खबर में खास:-

  • 12 मार्च से 30 मार्च तक चलने वाले ऐतिहासिक झंडे मेले का शुभारंभ

  • दरबार साहिब के बाहर लगे 86 फीट के झंडे जी को उतारा जाता है

  • महाराज सुख रूप में संगतो को अपना आशीर्वाद देने दून पहुंचते हैं

  • यहां 3000 की संख्या में संगत एक साथ बैठकर भोजन कर सकती हैं

347 साल पुराने ऐतिहासिक झंडे जी मेले का शुभारंभ

देहरादून में 347 साल पुराने ऐतिहासिक झंडे जी मेले का शुभारंभ कल से झंडारोहण के साथ हो गया है। सिखों के सातवें गुरु हरराय जी महाराज के बड़े पुत्र गुरु राम राय महाराज साल 1676 में अपने जत्थे के साथ देहरादून पहुंचे थे। जहां पहुंचने पर उनके घोड़े के पैर जमीन में धंसने के कारण उन्होंने अपने जत्थे को देहरादून में ही डेरा डालने के आदेश दिए थे। श्री गुरु राम राय जी महाराज के देहरादून में डेरा डालने के कारण ही इसका नाम देहरादून रखा गया, जो पहले गांव की शक्ल में हुआ करता था। धीरे-धीरे सिखों के इस पवित्र मेले में देश-विदेश से लोग देहरादून पहुंचते हैं।

इस महीने की शुरुआत में दरबार साहिब के बाहर लगे 86 फीट के झंडे जी को उतारा जाता है। उसके बाद उस पर देसी घी दही और गंगाजल का प्ले किया जाता है। उसके बाद झंडे जी पर गिलाफ चढ़ाए जाते हैं और सबसे अंत में मखमली गिलाफ चढ़ाकर झंडारोहण किया जाता है। इसी के साथ इस मेले की विधिवत रूप से शुरुआत हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस मेले में जो भी संगत अपनी मनोकामना लेकर पहुंचती है उसकी मन्नत पूरी जरूर होती है।

महाराज सुख रूप में संगतो को अपना आशीर्वाद देने पहुंचते हैं

देहरादून के झंडा जी मेले में झंडारोहण के साथ ही हर साल झंडे के ऊपर परिक्रमा करता हुआ बाज भी नजर आता है। ऐसी मान्यता है कि श्री गुरु राम राय जी महाराज सुख रूप में संगतो को अपना आशीर्वाद देने दरबार साहिब पहुंचते हैं। ऐसा ही नजारा इस बार भी देखने को मिला। जब ध्वजारोहण के साथ ही उसके ठीक ऊपर एक बार झंडे की परिक्रमा करता हुआ नजर आया। इस साल होने वाले इस मेले में दरबार साहिब के तरफ से एक विशेष हॉल भी तैयार किया गया है, जिसमें आने करीब 3000 की संख्या में संगत एक साथ बैठकर भोजन कर सकती हैं।

यानी जिस सांझा चूल्हे को संगतो के खाने पीने के लिए शुरू किया गया था, उस परंपरा को दरबार साहिब ने जारी रखा है। दरबार साहिब के गुरु महंत देवेंद्र दास का कहना है कि सिखों के इस पवित्र स्थल पर संगतो का आना शुरू हो गया है। जो सिक्खों के गुरु राम राय महाराज की परंपरा को आगे ले जाने का काम कर रही है और इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोय हुए हैं।

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Aarti Bisht

आरती बिष्ट, इन्हें मीडिया इंडस्ट्री में करीब 3 साल का एक्सपीरियंस है। इन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक ऑनलाइन वेब पोर्टल के माध्यम से की। जहां उन्होंने एक कंटेंट राइटर, एंकर और रिपोर्टिंग समेत गई क्षेत्र में काम किया...

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