India News (इंडिया न्यूज़), Mathura News: उत्तर प्रदेश में ज्ञानवापी मामले के बाद अब वृंदावन में बांके बिहारी जी महाराज मंदिर के नाम से दर्ज जमीन को लेकर विवाद शुरु हो गया है। जहां पर राजस्व विभाग की ओर से पहले कब्रिस्तान और फिर पुरानी आबादी में दर्ज करने का मामला एक बार फिर गरमाने लगा है। जिसके बाद इस मामले में अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपनी दस्तक दी है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा मथुरा की छाता तहसील के तहसीलदार को यह बताने का निर्देश दिया गया है कि 2004 में बांके बिहारी जी महाराज मंदिर के नाम दर्ज जमीन कैसे कब्रिस्तान के नाम पर दर्ज की गई। वहीं, न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव बताते है कि श्री बिहारी जी सेवा ट्रस्ट की ओर से दायर एक याचिका पर यह आदेश पारित किया गया है।बता दें, इलाहाबाद हाई कोर्ट में यह मामला रिट याचिका, छाता के राजस्व अधिकारियों को याचिकाकर्ता के आवेदन पर निर्णय करने का निर्देश देने के अनुरोध के साथ दायर की गई है। आवेदन कर राजस्व प्रविष्टि ने इसे सही करने की प्रार्थना की है। जिसमें ये बोला गया है कि बांके बिहारी जी महाराज की जमीन पर अवैध रूप से कब्रिस्तान के नाम पर दर्ज कर दी गई है।
ट्रस्ट ने कहा है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान (तब सेवा संघ) को समझौते का अधिकार नहीं था। लेकिन 1968 में सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी से भूमि को लेकर समझौता किया था। ये समझौता गलत है। इस समझौते की डिक्री 1973 व 1974 में न्यायालय द्वारा की गई। इसे खारिज किया जाए। दरअसल मथुरा श्री कृष्ण जन्मभूमि के मामले में अब तक 17 वाद दायर हो चुके हैं, लेकिन ये पहला मामला है, जिसमें जन्मभूमि ट्रस्ट खुद ही वादी है। ये वाद बालकिशन और केशव देव की ओर से किया गया है।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ भूमि पर ही जन्मस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह है। जन्मस्थान का कार्य देख रहे श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने 1968 में शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी से प्रमुख दस बिंदुओं पर समझौता कर लिया। इससे पूर्व में चले सभी वाद समाप्त हो गए। कालांतर में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ का नाम परिवर्तित कर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान कर दिया गया। 13.37 एकड़ भूमि श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम पर है। समझौता संस्थान ने किया था, इसलिए दावा किया गया है कि भूमि जब संस्थान के नाम नहीं थी, तो उसके द्वारा किया गया समझौता ही गलत है।
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