India News (इंडिया न्यूज), विवेक कौशिक, Baghpat news : मानव सभ्यताएं नदियों के किनारे ही बसती रही है। आधुनिक युग मे भी नदियों किनारे बसे हुए गांव और शहरों को ज्यादा मुफीद माना जाता है।
गांव और देहात में नदी किनारे आबाद गांव अपेक्षाकृत समर्द्ध माने जाते है। लेकिन बागपत के एक गांव असारा में नदी ही मुसीबत का सबब बनी हुई है, और यहां के वाशिंदे अपनी फसलों को बचाने के लिए रोजाना मौत के पुल से आवाजाही करने को मजबूर है।
मुस्लिम बाहुल्य इस गांव में रहने वाले सैय्यद फिरके के कब्रिस्तान भी नदी के उस पार ही है जनाजे को कब्रिस्तान तक ले जाने के लिए मौत का रास्ता ही तय करना पड़ता है।
महिलाएं भी अपने खेतों की तरफ जाने के लिए जान पर खेल कर ही आने जाने को मजबूर है।
दरअसल बागपत के असारा गांव के नजदीक कृष्णा नदी बहती है, और कृष्णा नदी के उस पार असारा गाँव के लोगो की करीब चार हज़ार बीघा कृषि भूमि है, और नदी को पार करने के लिए कोई पुल नही है। इसलिए अपने खेतों तक जाने के लिए किसानों को जान हथेली पर रख कर जाना पड़ता है। गांव वालों का कहना है कि जन प्रतिनधियों और जिला प्रशासन से बहुत बार गुहार लगा चुके है लेकिन उनकी समस्या ज्यों की त्यों है।
दुश्वारियों का ये सफर यही नही रुकता गांव में रहने वाली सैय्यद बिरादरी के कब्रिस्तान भी नदी के उस पार है इसलिए गांव में किसी की मौत होने पर जनाजे को उस पार ले जाना भी बड़ी समस्या है इसके अतिरिक्त गांव के नोनिहाल जो आस पास के गांव में पढ़ने जाते है उनको भी जान हथेली पर रख कर ही नदी के उस पार जाना पड़ता है।
जन प्रतिनधियों और हुक्मरानों की उपेक्षा के चलते गांव वालों ने खुद ही चंदा इकठ्ठा करके एक छोटा पुल बनाने की कवायद शुरू की थी लेकिन नदी में पानी ज्यादा आ जाने के कारण ये प्रयास भी सिरे नही चढ़ पायाऔर असारा गांव के लोग आज भी लोहे के पाइप के सहारे नदी को पार करने को मजबूर है गांव वालों का कहना है कि लोहे के इन पाइपों पर चल कर नदी पार करने के प्रयास में कई बार दुर्घटनाएं भी हो चुकी है।
जब नदी में पानी अधिक आ जाता है तो किसान नदी के उस पार नही जा पाते और किसानों की फसल बिना देख रेख के बर्बाद हो जाती है।असारा गांव के लोगों की गुहार है कि गांव में नदी पर पुल बनाया जाना चाहिये।
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