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Election 2024: प्रियंका लड़ेंगी लोकसभा चुनाव, पार्टी ने शुरू किया होमवर्क….

• LAST UPDATED : August 29, 2023

India News (इंडिया न्यूज़), Martand Singh, Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में बीजेपी के नेतृत्व वाला गठबंधन एनडीए और विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. पूरी ताकत से जुटा हुआ है। कांग्रेस पार्टी के लिए भी ये चुनाव काफी अहम होने जा रहा है। 10 साल से सत्ता से दूर रही कांग्रेस पार्टी इस बार पूरी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में उतरना चाहती है।

यूपी कांग्रेस पार्टी अपने टॉप लीडर्स को उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ाने पर मंथन कर रही है। यूपी में प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने को लेकर कांग्रेस ने अपना होमवर्क शुरू कर दिया है.

प्रियंका के लिए यूपी की 5 सीटों पर होमवर्क

कांग्रेस पार्टी के अंदरखाने से ऐसी जानकारी निकलकर सामने आ रही है कि प्रियंका गांधी के लिए यूपी की 5 सीटों पर होमवर्क किया जा रहा है। जिसमें पहली प्राथमिकता फूलपुर को दी जा रही है वहीं दूसरे प्रयागराज और तीसरे नंबर पर वाराणसी है। इन सीटों से कांग्रेस का गहरा नाता रहा है। इसके अलावा यूपी की अन्य दो सीटों का भी विकल्प ढूंढने पर काम शुरू हुआ है। इसमें एक सीट रायबरेली हो सकती है। फिलहाल रायबरेली से सोनिया गांधी सांसद हैं लेकिन वो काफी समय से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं।

अब सीटवार समझते है कि किस सीट के क्या मायने 

एक दौर में फूलपुर कांग्रेस की पारंपरिक सीट हुआ करती थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के बाद पहली बार 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में फूलपुर संसदीय सीट को अपनी कर्मभूमि के लिए चुना और वह लगातार 1952, 1957 और 1962 में यहां से सांसद निर्वाचित हुए। नेहरू के धुर-विरोधी रहे समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया 1962 में फूलपुर लोकसभा सीट से उनके सामने चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन वो जीत नहीं सके। अब तक सिर्फ दो ही ऐसे नेता हैं जो इस सीट से हैट-ट्रिक बना पाए हैं।

पहले जवाहरलाल नेहरू और दूसरे हैं रामपूजन पटेल जो 1984, 1989 और 1991 में इस सीट से सांसद रहे। फूलपुर में लोकसभा में पांच विधानसभा सीटें आती हैं, इनमें फूलपुर, सोरांव, फाफामऊ, इलाहाबाद उत्तरी और इलाहाबाद पश्चिमी सीट शामिल हैं। फूलपुर सीट पर इस बार 19 लाख 75 हजार मतदाता हैं। इनमें 10 लाख 83 हजार पुरुष वोटर तो 08 लाख 91 हजार महिला वोटर हैं। इसके अलावा 184 वोटर थर्ड जेंडर के हैं। साल 2014 के मुकाबले इस बार यहां तकरीबन बासठ हजार वोटर बढ़े हैं।

इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा सीटें

गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर बसा इलाहाबाद राजनीति और धर्म की दृष्टि से हमेशा ही प्रासंगिक रहा है। इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा सीटें हैं जिसमें मेजा, करछना, इलाहाबाद दक्षिण, बारा और कोरांव शामिल है। यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1,666,569 है जिसमें महिला मतदाता 749,001 और पुरुष मतदाता की संख्या 9,17,403 है। इलाहाबाद में पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ जिसमें कांग्रेस विजयी रही।

1957 और 1962 में यहां से लालबहादुर शास्त्री कांग्रेस की टिकट पर निर्वाचित हुए। 1967 और 1971 के दोनों आम चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की। 1977 में कांग्रेस पांचवीं जीत की उम्मीद लगाये बैठी थी लेकिन कांग्रेस की उम्मीदों पर लोकदल के ज्ञानेश्वर मिश्र ने जीत दर्ज करके पानी फेर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस के टिकट पर 1980 में जीतकर निर्वाचित हुए। 1981 में उपचुनाव हुए और इसमें कांग्रेस (आई) के के.पी. तिवारी ने जीत दर्ज की। वहीं 1984 में इस सीट से कांग्रेस की टिकट पर अमिताभ मैदान में उतरे और विजयी हुए।

16 लोकसभा चुनावों का हिसाब

सबसे पहले बात वाराणसी लोकसभा सीट की, वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के तहत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। ये रोहणिया, वाराणसी उत्तरी, वाराणसी दक्षिण, वाराणसी छावनी और सेवापुरी हैं। अब तक 16 लोकसभा चुनावों का हिसाब लगाया जाए तो वाराणसी सीट से सात बार कांग्रेस और छह बार भाजपा जीती है। इसके अलावा यहां से एक-एक बार जनता दल और सीपीएम उम्मीदवार को भी जीत नसीब हुई है। वहीं, भारतीय लोकदल ने भी इस सीट पर एक बार जीत हासिल की है जबकि, समाजवादी पार्टी और बसपा ने इस सीट पर अभी तक कभी भी जीत दर्ज नहीं की है।

कुर्मी समाज के मतदाताओं की संख्या ज्यादा

वाराणसी लोकसभा सीट से कई दिग्गज नेता चुनाव जीतकर आए हैं। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर से लेकर यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी शामिल हैं। इस सीट से मुरली मनोहर जोशी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री भी विजयी रहे हैं। अगर बनारस के जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां कुर्मी समाज के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। रोहनिया और सेवापुरी में कुर्मी मतदाता काफी संख्या में हैं। इसके अलावा ब्राह्मण और भूमिहार वोटर्स की भी अच्छी खासी तादाद है। वाराणसी के लिए वैश्य, यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी जीत के लिए निर्णायक साबित होती है।

अब ये तो वक्त ही बताएगा कि पार्टी हाई कमान को प्रियंका गांधी के लिए यूपी की कौन सी सीट मुफीद मिलती है। लेकिन इतना तय है कि खोए जनाधार को वापस पाने में जुटी कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपने टॉप लीडर्स को लड़ाने का मूड बना चुकी है। साथ ही इसके पीछे कांग्रेस की मंशा यह भी है की जब गठबंधन के दौरान सीट शेयरिंग की बात आए तो भागीदारी बढ़ाई जा सके।

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