India News (इंडिया न्यूज़), rashid hashmi, “Jahaan base ras, vo banaaras”:बनारस, वाराणसी, काशी- शिव के त्रिशूल पर बसा अल्हड़ सा शहर। काशी से 56 किमी दूर पूर्वी उत्तर प्रदेश का जौनपुर मेरा शहर है। बचपन में त्यौहार के कपड़े ख़रीदने के लिए सबसे बड़ा शहर बनारस। टर्र-टर्र करती छोटी सी वॉटर बोट ख़रीदने की ललक विश्वनाथ गली ले जाती थी, घूमने फिरने का खुला आसमान घाट ले जाता था- अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट, सिंधिया घाट, मान-मंदिर घाट, ललिता घाट, बछराज घाट। बनारस का हुस्न जब ग़ालिब की नज़र से देखा तो जाना- ब-ख़ातिर दाराम ईनक दिल ज़मीने, बहार आईं सवाद ए दिल नशीने (यानि फूलों की इस सरज़मीन पर मेरा दिल आया है, क्या अच्छी आबादी है जहां बहार का चलन है)। काशी पर केदारनाथ सिंह की कलम लिखती है-
“इस शहर में वसंत अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है”
महादेव की वाराणसी में नमस्ते-सलाम नहीं चलता। क्या हिंदू, क्या मुसलमान, हर कोई कहता है- गुरु का हाल, हर-हर महादेव। काशी के महादेव हर धर्म, पंथ, संप्रदाय, समुदाय के हैं। काशी अनंत, काशी कथा अनंता। हर गली में कोई ‘गुरु’ ही तो बनारस है।
वाराणसी, काशी या फिर बनारस- तीन नामों वाले शहर की कहानी में मुग़लकाल से लेकर अंग्रेज़ों के शासन तक के कई पन्ने हैं। शिव की नगरी काशी, भोलेनाथ का धाम काशी, बाबा विश्वनाथ का धाम ये शहर इतिहास के पन्नों में काशी के नाम से दर्ज है। शहर को करीब तीन हज़ार साल से इसी नाम से पुकारा जाता है। माना जाता है कि प्राचीनकाल में हुए एक राजा ‘काशा’ के नाम पर शहर का नाम काशी पड़ा। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि काशी को कई बार ‘काशिका’ से भी संबोधित किया गया जिसका मतलब है चमकता हुआ। ऐसी मान्यता है कि काशी की स्थापना भगवान शिव ने लगभग 5000 साल पहले की थी। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही विकसित हुआ। कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी से लेकर शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रविशंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया और उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की विरासत समेटे हुए है काशी।
बनारस एक ऐसा शहर है जो कभी धर्म के दायरे में नहीं बंधा, तभी तो कबीर के दोहे से लेकर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की शहनाई की गूंज आज तक धर्म से ऊपर हैं। बनारस का रस आप दिल्ली में बैठ कर नहीं चख सकते, इसके लिए आपको आना होगा। भूतही इमली, नाटीइमली, टेढ़ी नीम, बेनी राम का बाग घूमना होगा। भोजूबीर, लहुराबीर, जोगियाबीर, लौटूबीर को महसूस करना होगा। गोदौलिया, मछोदरी, विश्वेश्वरगंज, पीलीकोठी, चौहट्टा लाल खां की महक को आत्मसात करना होगा। तभी जान सकेंगे की महादेव की काशी में कण कण शिव बसे हैं।
ज्ञानवापी में जो शिव के सत्यार्थी हैं वो कहते हैं काशी का सत्य शिव में है। हिंदू पक्ष के वकील का दावा है कि ज्ञानवापी की 3D इमेजिंग, सैटेलाइट से मैपिंग (फ्रेमिंग-स्कैनिंग) में मूर्तियों के कुछ टुकड़े मिले हैं। साथ ही प्राचीन मंदिर के भग्नावशेष हैं। दावा तो यहां तक है कि ज्ञानवापी के गुंबद में ASI को कई डिज़ाइन और मंदिर शैली के 20 से ज़्यादा आले भी मिले हैं। प्रत्यक्ष को प्रमाण की ज़रूरत नहीं- त्रिशूल, स्वास्तिक, नंदी सनातन के प्रमाण हैं। लेकिन AIMIM कि मुखिया असदुद्दीन ओवैसी की नज़र और नज़रिया कहते हैं कि ASI की रिपोर्ट आएगी, तो भाजपा एक नैरेटिव सेट करेगी।
शिव पुराण, लिंग पुराण और स्कंद पुराण के काशी खंड में काशी विश्वनाथ मंदिर का वर्णन है। ज्ञानवापी विश्वेश्वर मंदिर का ही हिस्सा है। काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी का दावा है- “ज्ञानवापी कूप का निर्माण आज से 5 हज़ार साल पहले भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से किया था। इसी कूप में मां पार्वती नहाकर भगवान विश्वेश्वर के शिवलिंग की पूजा करती थीं। इसका वर्णन स्कंद पुराण में भी किया गया है।” काशी का सच महादेव में है, वाराणसी का सत्य शिव में है, बनारस का रस भोले बाबा में हैं। सच को समझें, सच को जानें, सच ही मानें।
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