कन्नौज में आकर्षक शीशियों में बंद इत्र।
अजय द्विवेदी, नई दिल्ली
मां गंगा के किनारे बसे कन्नौज को इत्र नगरी यूं ही नहीं कहा जाता है। यहां करीब 5000 हजार साल से इत्र बनाने का काम हो रहा है। यह शहर खुशबू के लिए दुनियाभर में मशहूर है और कभी यहां की गलियों में इत्र बहता था और सड़कें चंदन की सुगंध से महकती थीं। यहां से गुजरने वाली हवाएं खुशबू संग लेकर मीलों दूर तक जाती थीं। पारंपरिक तरीके से इत्र बनाने के लिए प्रसिद्ध इस शहर की मिट्टी में भी खुशबू है क्योंकि यहां मिट्टी से भी इत्र बनाया जाता है। यहां बनने वाले इत्र की मांग दुनिया के कई देशों में है।
कन्नौज में आकर्षक शीशियों में बंद इत्र।
कन्नौज में जहां एक ओर सबसे सस्ता इत्र तैयार किया जाता है, वहीं दुनिया का सबसे महंगा इत्र भी यहीं पर बनाता है। अदरऊद नाम का इत्र सबसे महंगा है, जो असम की विशेष लकड़ी आसमाकीट से बनाया जाता है। इस इत्र के एक ग्राम की कीमत पांच हजार रुपये तक है। कारोबारी बताते हैं कि अदरऊद की अंतरराष्टÑीय बाजार में कीमत 50 लाख रुपये प्रति किलो तक है। वहीं, गुलाब से बनने वाला इत्र भी करीब तीन लाख रुपये किलो में बिकता है। केवड़ा, बेला, केसर, कस्तूरी, चमेली, मेंहदी, कदम, गेंदा, शमामा, शमाम-तूल-अंबर, मस्क-अंबर जैसे इत्र भी तैयार किए जाते हैं। यहां बनने वाले इत्र की कीमत 25 रुपए से लेकर लाखों रुपए तक है।
कन्नौज में बनने वाला इत्र की वैसे तो पूरी दुनिया में मांग है लेकिन मुस्लिम कंट्री व पश्चिमी देशों में अररूद इत्र की अधिक मांग है। यह इत्र हाथो-हाथ बिक जाता है। इसमें यूके, यूएस, सऊदी अरब, ओमान, ईराक, ईरान समेत कई देशों में सप्लाई किया जाता है। यहां बना इत्र पूरी तरह से प्राकृतिक होता है। इसमें केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसलिए लोग इसे ज्यादा पंसद करते हैं।
कन्नौज में आकर्षक शीशियों में बंद इत्र।
कन्नौज को इत्र नगरी यूं ही नहीं कहा गया है। यहां मिट्टी में भी खुशबू है, इसकी पूरी दुनिया कायल है। यहां की मिट्टी से भी इत्र बनाया जाता है। बरसात की जब बूंदें कन्नौज की मिट्टी पर पड़ती हैं, तो इस मिट्टी से एक खास खुशबू उठती है। उसी खुशबू को बोतलों में कैद कर लिया जाता है। बारिश के पानी से गीली मिट्टी को तांबे के बर्तनों में पकाया जाता है। इस मिट्टी से जो खुशबू उठती है उसे बेस आॅयल के साथ मिलाकर इत्र बनाने की प्रक्रिया पूरी की जाती है।
कन्नौज का एतिहासिक द्वार।
अंतरराष्टÑीय बाजार में जिस तरह खुशबू अनेक हैं, उसी तरह इत्र के भी कई नामों से पहचान मिली है। प्राचीन काल से फिजा को महकने वाला इत्र अब परफ्यूम, फ्रेगरेंस और सेंट आदि नामों से जाना जाता है। इन इत्रों में हर मौसम के हिसाब से भी इत्र मौजूद है। ठंडों से बचाव के लिए जहां शमामा और गर्मी के लिए खस इत्र का बड़ा उपयोगी है।
खेतों से तोड़कर लाए गए फूलों को भटठियों पर लगे बहुत बड़े तांबे के भपका (डेग) में डाला जाता है। एक भपके में करीब एक क्विंटल फूल तक आ जाते हैं। फूल डालने के बाद इन भपकों के मुंह पर ढक्कन रखकर गीली मिट्टी से सील कर दिया जाता है। इसके बाद कई घंटों तक आग में पकाया जाता है। इन भपकों से निकलने वाली भाप को एक दूसरे बर्तन में एकत्र किया जाता है, जिसमें चंदन तेल होता है। इसे बाद में सुगंधित इत्र में तब्दील कर दिया जाता है।
छोटे व बड़े इत्र कारखाने : 300
उत्पादन : एंशेसियल आॅयल, अगरबत्ती, धूपबत्ती, परफ्यूमरी, चंदन पाउडर।
कारोबारी संख्या : करीब 17,000
कारोबार प्रतिवर्ष : 400 करोड़
कर चुकाते : प्रतिवर्ष 40 करोड़
पवन त्रिवेदी
कन्नौज के इत्र की देश दुनिया में पहचान है। कन्नौज में हर तरह के इत्र बनाए जाते हैं। इसकी कीमत 100 रुपये लेकर लाखों रुपये तक हैं। यहां इत्र के अलावा अगरबत्ती, धूपबत्ती, गुलाब जल, चंदन पाउडर समेत कई सुंगधित उत्पाद तैयार किए जाते हैं।
-पवन त्रिवेदी, अध्यक्ष, अतर एंड परफ्यूमर्स एसोसिएशन कन्नौज।
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