India News(इंडिया न्यूज़), History of EVM: जब पहला मतदाता लोकसभा चुनाव में अपना वोट डालने के लिए वोटिंग बटन दबाएगा, तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) 2004 के बाद से पांच संसदीय चुनावों में इस्तेमाल होने के महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच जाएगी। ईवीएम की यात्रा विभिन्न विकासों से भरी रही है। तो वहीं, समय-समय पर कुछ राजनीतिक दलों ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं? जबकि अन्य ने हेरफेर की बहुत कम गुंजाइश के साथ परिणामों की त्वरित घोषणा के लिए इसकी प्रशंसा की है।
देश में पहली बार ईवीएम का विचार 1977 में आया था और इसका प्रोटोटाइप 1979 में हैदराबाद स्थित इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) द्वारा विकसित किया गया था। ईवीएम के साथ पहला चुनाव 19 मई 1982 को रद्द कर दिया गया था। केरल की पारूर विधानसभा सीट पर चुनाव था। वहीं, 1989 में ईवीएम के इस्तेमाल के लिए कानून बनाया गया और तभी से चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल होता आ रहा है।
2004 के लोकसभा चुनावों में, सभी 543 निर्वाचन क्षेत्रों में EVM का उपयोग किया गया था। ईवीएम में कई तकनीकी परिवर्तन किए गए और वर्ष 2006 में मशीनों को और उन्नत किया गया था। 2006 से पहले निर्मित ईवीएम को ‘एम1 ईवीएम’ के रूप में जाना जाता है जबकि 2006 से 2010 के बीच निर्मित ईवीएम को ‘एम2 ईवीएम’ के रूप में जाना जाता है।
वर्ष 2013 से निर्मित नवीनतम पीढ़ी के ईवीएम को ‘एम3 ईवीएम’ के रूप में जाना जाता है। वहीं, चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और सत्यापन में सुधार के लिए, मतदाता सत्यापन योग्य पेपर आउटपुट (वीवीपीएटी) मशीनों के उपयोग को शुरू करने के लिए 2013 में चुनाव नियम, 1961 में संशोधन किया गया था।
बता दें कि एक EVM में कम से कम एक बैलेट यूनिट, एक कंट्रोल यूनिट और एक वीवीपैट होता है। ईवीएम की संभावित लागत में 16,000 रुपये प्रति वीवीपैट, 9,800 रुपये प्रति कंट्रोल यूनिट और 7,900 रुपये प्रति बैलेट यूनिट शामिल हैं।
चुनाव हारने के वाद कई विपक्षी पार्टियो ने EVM पर सवाल उठाते रहे हैं। यहां तक की कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार ईवीएम को ‘मोदी वोटिंग मशीन’ (एमवीएम) कहा था। वहीं, यूपी की मुख्यमंत्री व बसपा सुप्रीमो मायावती ने मांग की है कि मतपत्र प्रणाली फिर से शुरू की जाए। लेकिन सरकार और चुनाव आयोग ने स्पष्ट कह दिया है कि मतपत्र प्रणाली को फिर से शुरू करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
पिछले संसदीय चुनाव के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त रहे सुनील अरोड़ा ने इस बात पर अफसोस जताया है कि चुनावी हार का सामना करने वाली पार्टियां EVM का इस्तेमाल ‘फुटबॉल’ की तरह कर रही हैं। उन्होंने कहा कि ईवीएम से छेड़छाड़ संभव नहीं है। जहां तक साजिश और हेरफेर के संदेह का सवाल है, वे निश्चित रूप से दोषरहित हैं। लेकिन तकनीकी गड़बड़ियाँ संभव हैं, जैसा कि किसी अन्य उपकरण के मामले में होता है।
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