India News (इंडिया न्यूज़), Mayawati: आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने अपनी तैयारियां शुरु कर दी है। एक ओर जहां भाजपा(एनडीए) और विपक्ष इंडिया लेकर आमने- सामने है। तो वहीं बसपा तीसरी ताकत बनने की कोशिश में है। मायावती का पूरा फोकस तीसरा मोर्चा बनाया जानें पर है। ये भी कह सकते हैं कि राजनीतिक हिस्सेदारी के लिए मायावती ने अपने नए फार्मूले पर काम शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि इसके लिए मायावती औवेसी की पार्टी आईएमआईएमआई व अन्य किनारे खड़े दलों को साथ ले सकती हैं।
हालांकि सियासी गठबंधन का साथ कई बार बसपा को मिलता आया है। वहीं वर्ष 2007 की बात करें तो बसपा ने अकेले अपने दम पर यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। साथ ही लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में गठबंधन से बसपा की ताकत भी बढ़ी। जिसके बाद अयोध्या पर दिए गए विवादित ढांचे के विध्वंस के प्रदेश में बीजेपी की सरकार गिर गई थी। ऐसे में 1993 में विधानसभा चुनाव हुए।
बसपा संस्थापक कांशीराम और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने बीजेपी को रोकने के लिए आपस में हाथ मिला लिया था। जिसके बाद दोनों की गठबंधन सरकार ने बीजेपी को यूपी से साफ कर दिया था। बसपा 164 सीट पर लड़कर 67 सीटें जीत गई थी। 12 सीटों से उछलकर बसपा सीधे 67 सीटों पर पहुंची थी। अगर बात वर्ष 1993 की करें तो बसपा का वोट मात्र 11 प्रतिशत था। वहीं भाजपा को 34 प्रतिशत वोट मिले थे। बावजूद इसके गठबंधन भाजपा पर भारी पड़ा था। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने थे लेकिन 1995 में यह गठबंधन टूट गया था।
मायावती ने बसपा (बहुजन समाज पार्टी) को बनाकर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समायोजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बसपा को विशेष रूप से दलितों, अति पिछड़ों, और अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा करने के लिए बनाया था। बता दें, बसपा के संस्थापक दिनोबंधु भट्ट जी के निधन के बाद, मायावती ने दल की कमान संभाली और उन्हें एक शक्तिशाली राजनीतिक दल बनाने में सफलता मिली। उनकी नेतृत्व में बसपा ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बहुमत सरकारों को बनाने में मदद की।
हालांकि बसपा को समय-समय पर गठजोड़ (coalition) की जरूरत पड़ी, लेकिन मायावती ने अपने नेतृत्व में पार्टी को स्थायी आधार दिया और अपने समर्थकों का विश्वास जीता। वे बसपा को एक आधुनिक राजनीतिक दल बनाने के लिए प्रयास करती रहीं और दिल्ली में सत्ता में आने के लिए भी उठाए गए।
बसपा के नेतृत्व में, मायावती ने एक आमजन के लिए विकास और समाजिक न्याय के मुद्दों पर जोर दिया। उनके नेतृत्व में बसपा ने अपने समर्थकों को एक एकजुट होकर संगठित किया और विभिन्न चुनावों में प्रचंड चुनौती पेश की। मायावती ने अपने नेतृत्व में कई बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर भी काम किया। वे पहली बार 1995 में मुख्यमंत्री बनीं और उसके बाद उन्हें चार अधिकारी कार्यकालों का अवसर मिला। उनके कार्यकाल में, मायावती ने उत्तर प्रदेश के विकास के लिए कई योजनाएं और परिवर्तनीय प्रोजेक्ट्स की शुरुआत की, जो उस समय के लिए अपरिवर्तनीय थे।
हालांकि, उनके कुछ निर्णय और सरकारी नीतियों पर विवाद भी उठे, जिससे उन्हें समाज में विभिन्न पक्षों के समर्थकों का सामना करना पड़ा।अपने राजनीतिक जीवन के दौरान, मायावती को कई बार समाज में आर्थिक और सामाजिक विकलांगता को बहुमुखी बनाने के लिए भी प्रशंसा मिली। वे अपने समर्थकों के बीच एक लोकप्रिय नेता रहीं और उन्हें “बहनजी” के नाम से पुकारा जाता था। कुल मिलाकर, मायावती ने अपने नेतृत्व में बसपा को उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण खंडग्रासी बनाया और अपने समर्थकों के बीच एक महानायिका बनीं।
मायावती ने सबसे पहले 1993 में समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई थी। उन्होंने जून 1995 में समाजवादी पार्टी के समर्थन पर मुख्यमंत्री के पद पर स्थान लिया था। हालांकि, यह सहयोग स्थायी नहीं रहा और बाद में वे अपनी पार्टी बसपा (बहन मायावती पार्टी) के साथ स्वयं सरकार बनाने में सफल हुईं। बसपा (बहन मायावती पार्टी) के साथ मिलकर मायावती ने पहली बार 1995 में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद को सम्भाला। उस समय वे प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ विभिन्न चुनावों में गठबंधन किया था और उससे सरकार बनाई थी।
बसपा के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश की सरकार में मायावती ने अपने समर्थकों के लिए कई उन्नति योजनाएं शुरू की। उन्होंने दलितों, अति पिछड़ों, और अनुसूचित जनजातियों के लिए समाजिक कल्याण योजनाएं लागू की जो उन्हें उत्तर प्रदेश के राजनीतिक मंच पर और भी बढ़ावा देती थीं। हालांकि, बसपा और समाजवादी पार्टी के बीच समझौते के बाद, दोनों दलों के बीच समर्थन का गणित विचार हुआ और उससे उत्तर प्रदेश में तीन अधिकारी कार्यकालों के दौरान एक-दूसरे के साथ सरकार बनाई गई।
इससे पहले भी मायावती ने विभिन्न समयों पर सरकार बनाने का प्रयास किया, लेकिन उस दौरान वे अधिकांशत: अल्पमती में रह गईं। बसपा के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक स्तर पर मायावती का स्थायी प्रभाव दिखाया गया और वे राज्य के विकास और समाज में समर्थन बढ़ाने में सफल रहीं।
अगर बात बसपा के वोट बैंक की करें तो वर्ष 2012 में करीब 26 फीसदी, 2017 में 22.4 और 2022 में 12.7 फीसदी पर पहुंच गया है। बसपा के लगातार वोटर छिटक रहे हैं। काडर वोटर तक संभालना मुश्किल हो रहा है पर बसपा ने इस चुनाव में भी अकेले लड़ने की बात कहकर सभी को चौंकाया है। चर्चाएं तमाम हैं। विपक्षी बसपा को भाजपा की बी टीम बताते हैं। एनडीए में तो बसपा संभवत: इसलिए भी जाने से गुरेज कर रही है कि यदि ऐसा हुआ तो इन आरोपों पर कहीं मुहर ही न लग जाए। साथ ही वह इस छवि से निकलने की भी कोशिश कर रही हैँ।
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