इंडिया न्यूज, लखनऊ:
UP Vidhan Sabha Election 2022 आरपीएन सिंह के भाजपा में जाने से पडरौना का कांग्रेसी किला ढह गया है। पडरौना राजघराने को पूर्वांचल में कांग्रेस के एक मजबूत किले के रूप में देखा जाता रहा है। यह राजघराना बीते 42 साल से कांग्रेस के संग था, पर अब ऐसा नहीं है। सीधे तौर पर कहे तो भाजपा ने बड़ी सेंध लगा दी है। यूपी पूर्वांचल में इसके गहरे मायने नजर आ रहे हैं।
कुंवर आरपीएन सिंह का राजनीति में बड़ा कद है। आरपीएन ने पडरौना विधानसभा सीट से 1996, 2002 और 2007 में जीत की हैट्रिक लगाई। 1996 में ही पडरौना संसदीय सीट पर उनको हार का समाना करना पड़ा। 2009 में यहां से चुनाव जीतकर जब संसद पहुंचे तो संप्रग सरकार में सड़क ट्रांसपोर्ट एवं कापोर्रेट, पेट्रोलियम एवं केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बने। इसके बाद के लगातार दो चुनावों में उनको हार जरूर मिली, लेकिन पार्टी और क्षेत्र में उनका राजनीतिक कद छोटा नहीं हुआ। कांग्रेस ने राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाकर झारखंड के विधानसभा चुनाव की कमान सौपी तो वहां जीत दिलाकर आरपीएन किंग मेकर की भूमिका में उभरे।
पडरौना राजघराने के कुंवर सीपीएन सिंह 1969 में पडरौना विधानसभा से भारतीय क्रांतिदल से चुनाव मैदान में उतरे और विधायक बने। उस समय जनता ने राजा साहब आए हैं, कहकर वोट दिया। इसके बाद इसी दल से जब 1971 में पडरौना संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतरे तो जनता ने साथ नहीं दिया। हार का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी के कहने पर वह कांग्रेस में शामिल हुए।
1980 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में संसदीय चुनाव मैदान में उतरे और संसद पहुंचे। इंदिरा गांधी सरकार में केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री बने। 1985 में पुन: कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। कांग्रेस से ही 1989 में लोकसभा चुनाव मैदान में थे। पारिवारिक विवाद में चचेरे भाई ने ही गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इसके बाद उनके पुत्र कुंवर आरपीएन सिंह ने राजनीति की बागडोर संभाली और कांग्रेस के साथ जुड़े रहे।