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इंडिया न्यूज, लखनऊ (Uttar Pradesh)। नगर निकाय चुनाव काफी दिनों से चर्चा में बना हुआ है। बीते दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने चुनाव को झटपट कराने के आदेश दिए हैं। वहीं इस पर योगी सरकार का कहना है कि पहले ओबीसी आरक्षण और उसके बाद ही चुनाव कराएंगे। ओबीसी आरक्षण के संबंध में सीएम योगी ने पैनल बनाने के आदेश दिए हैं। प्रदेश सरकार के इस बयान की विपक्षी दल आलोचना कर रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला का जिक्र हुआ, जिसके बारे में आम जनता को शायद ही कोई जानकारी होगी। बता दें कि ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला के तहत ही ओबीसी आरक्षण तय किया जाता है। आज हम आपको बताएंगे कि आखिर यह ट्रेपल टेस्ट फॉर्मूला क्या है।
ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला
सुप्रीम कोर्ट ने किशनराव गवली केस की सुनवाई के दौरान ओबीसी आरक्षण के संबंध में एक फॉर्मूला सुझाया था। जिसके तहत राज्य सरकारें ओबीसी आरक्षण के मामले में अपना फैसला सुना सकती हैं । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़ेपन को समझने के लिए एक कमिटी निर्माण हो। कमिटी की सिफारिश के मुताबिक सीटों को आरक्षित करने के संबंध में निर्णय लिया जाए। कमिटी के सुझाव को ध्यान में रखकर ओबीसी की संख्या के बारे में पुष्टिकरण हो। फॉर्मूले के मुताबिक ओबीसी आरक्षण तय करने से पहले एससी-एसटी को साथ मिलाकर कुल आरक्षण 50 फीसद से ऊपर ना हो।
योगी सरकार पर लगा यह आरोप
बता दें कि 5 दिसंबर को ओबीसी आरक्षण के संबंध में अधिसूचना जारी की गई थी। योगी सरकार पर आरोप लगा है कि इस अधिसूचना में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाए ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले को नज़रअंदाज़ कर दिया। लखनऊ बेंच ने जब इस पर सवाल किया तो सरकार की तरफ से हलफनामा पेश किया गया। अपने जवाब में सरकार ने कहा कि ओबीसी आबादी की पहचान के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए थे जो ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला की पहली शर्त थी। ओबीसी के आरक्षण पर सरकार सख्ती से पालन कर रही है। कुल आरक्षण और 50 फीसद से अधिक ना हो इस पर भी ध्यान दिया जा रहा है। साथ ही इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी पालन हो रहा है। सरकार के इस जवाब के बानजूद लखनऊ बेंच ने ट्रिपल टेस्ट की व्यवस्था को नहीं माना और 5 दिसंबर को अधिसूचना को रद्द कर दिया।
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