Uttar Pradesh
इंडिया न्यूज, गौतमबुद्धनगर (Uttar Pradesh) । उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स (UP STF) ने बुधवार को विदेशों से प्रतिबंधित सिगरेट की तस्करी करने वाले गिरोह के दो सदस्यों को पकड़ा है। इनके पास से 30 हजार 200 प्रतिबंधित सिगरेट की डिब्बी जब्त की गई है। भारतीय बाजार में बरामद सिगरेट की कीमत डेढ़ करोड़ रुपए है। ये सिगरेट इंडोनेशिया, कोरिया से आती हैं।
ये पूरी कार्यवाही अपर पुलिस अधीक्षक एसटीएफ गौतमबुद्धनगर राज कुमार मिश्र की अगुवाई में की गई। राजकुमार मिश्रा ने बताया कि मुखबीर से इनपुट मिला था कि एक ट्रक जिसके अन्दर अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से तस्करी करके लाई गई विदेशी सिगरेट भरी हुई है। जिन पर वैधानिक चेतावनी भी अंकित नहीं है।
पिलखुआ टोल से होता हुआ छिजारसी टोल से होकर जाएगा। इस सूचना पर स्थानीय पुलिस को अलर्ट किया गया। इसके बाद थाना पिलखुआ, जनपद हापुड़ की पुलिस के साथ मौके पर पहुंचकर घेराबंदी की गई। इस दौरान ट्रक को दोनों तस्करों के साथ पकड़ लिया गया। एक तस्कर का नाम मुजम्मिल जबकि दूसरे का नाम रवि गिरी है।
तस्कर मुजम्मिल ने बताया कि उसकी उम्र लगभग 32 साल है। वह और उसका भाई सोनू उर्फ अजरूद्दीन मुख्य रूप से पुराने टायरों को इकट्ठा करके उनको गलाने का काम करते थे। पुराने टायरों के काम के सिलसिले में अजरूद्दीन अक्सर पूर्वोत्तर के राज्यों में जाता था। वहां अजरूद्दीन की जान पहचान असम के निवासी गौरव नाम के व्यक्ति से हो गई थी। गौरव इंडोनेशिया, कोरिया व अन्य देशों की विदेशी सिगरेट की बांग्लादेश के रास्ते तस्करी करता था। यह लोग वहां से इस तरह तस्करी करके लाई गई विदेशी ब्रांड की सिगरेट को अपने ट्रक में पुराने टायरों के नीचे छिपाकर यहां लते थे।
इन सिगरेट को एनसीआर क्षेत्र में बेचने के लिए तड़के जाने वाली दूध की गाड़ियों का इस्तेमाल किया जाता था। इन सिगरेट को दूध की बाल्टियों के नीचे छिपाकर एनसीआर के दिल्ली, गुरुग्राम आदि क्षेत्रों में ले जाकर अच्छे दामों पर बेच दिया जाता था।
इन अवैध सिगरेट को लाने के लिए गोहाटी से गौरव की ओर से भेजे गए आदमी के हाथ में ट्रक व कैश दे दिया जाता था। वह सिगरेट को ट्रक में भरकर वापस ट्रक को हमें दे देता था। दूसरे तस्कर रवि गिरी (34) ने बताया कि कि पकड़े गए ट्रक के मालिक हाजी शौकीन, सोनू उर्फ अजरूदीन व मुजम्मिल के पुराने परिचित थे । उन्हीं के कहने के पर वह पिछले 04 बार से गुहाटी जाता था जिसके लिए उसे प्रति चक्कर 10 हजार रुपए दिए जाते थे।
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