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Tehri News: चंबा में तीन दिवसीय वीसी गबर सिंह मेला शुरू, जानें क्या था वीर सपूत गबर सिंह का इतिहास

• LAST UPDATED : April 22, 2023

INDIA NEWS (इंडिया न्यूज़ ), टिहरी: प्रथम विश्व युद्ध के नायक विक्टोरिया क्रास वीसी शहीद गबर सिंह नेगी की जन्मदिवस पर तीन दिवसीय मेला शुरू हो गया है। इस मौके पर सेना के जवानों, पूर्व सैनिकों और वरिष्ठ नागरिकों ने शहीद स्मारक पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। इसके अलावा हंस फाउंडेशन ने मेले को गोद लिया।

खबर में खास :-

  • चंबा में तीन दिवसीय वीसी गबर सिंह मेला शुरू
  • 21 अप्रैल को चंबा कस्बे में मेला आयोजित किया जाता
  • वीर सपूत गबर सिंह का इतिहास

21 अप्रैल को चंबा कस्बे में मेला आयोजित किया जाता

चंबा मंजूड़ गांव निवासी राइफलमैन वीसी गबर सिंह नेगी ने अंग्रेजों की फौज की ओर से जर्मनी सेना के खिलाफ फ्रांस के न्यू चैपल लैंड पर प्रथम विश्व युद्ध लड़ा और युद्ध में शहीद हो गए। अंग्रेज सैन्य अधिकारियों ने वीसी गबर सिंह के अदम्य साहस को देखते हुये उन्हें मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस मेडल से सम्मानित किया। उनकी याद में प्रति वर्ष 21 अप्रैल को चंबा कस्बे में मेला आयोजित किया जाता है। वीसी गबर सिंह के परिजनों और पूर्व सैनिकों ने कहा की वर्ष 2011 में तत्कालीन सीएम रमेश पोखरियाल निशंक ने वीसी गब्बर सिंह मेले को राजकीय मेला घोषित करने की घोषणा थी,

लेकिन आज तक वह राजकीय मेला घोषित नहीं हो पाया। कहा की पूर्व के वर्षों में वीसी गबर सिंह मेले के दिन सैन्य भर्ती का आयोजन होता था, जिससे सरकार ने बंद कर दिया है। उन्होंने सरकार से सैन्य भर्ती दोबारा शुरु करने की मांग की है। साथ ही शहीद के गांव को सड़क से जोड़ने तथा उनके पैतृक घर को म्यूजिम बनाने की मांग भी की है। वीसी गबर सिंह मेले में भारी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी।

वीर सपूत गबर सिंह का इतिहास

वीर सपूत गबर सिंह का जन्म प्रखंड चंबा के नजदीकी मज्यूड़ गांव में 1895 को हुआ था। इनके पिता बद्री सिंह नेगी एक साधारण किसान थे और माता साबित्री देवी गृहणी थी। कम आयु में ही वर्ष 1911 में इन्होंने टिहरी नरेश के प्रतापनगर स्थित राजमहल में नौकरी करनी शुरू कर दी। एक साल बाद 1912 में इनकी शादी मखलोगी पट्टी के छाती गांव की शतूरी देवी से हुई। गबर सिंह नेगी राजमहल में नौकरी तो कर रहे थे लेकिन मन में क्रांतिकारी विचार आ रहे थे। ठीक उसी समय प्रथम विश्वयुद्ध की आशंका से फौज में भर्ती होने का दौर भी शुरू हुआ।

गबर सिंह को आरंभ से ही फौजी वर्दी व सेना मे भर्ती होने का लगाव था। फौजी जीवन के सफर के बाद प्रथम विश्वयुद्ध से उनकी ऐतिहासिक गौरवगाथा शुरू हुई। गबर सिंह इसी मौके की तलाश में थे। वे सेना में भर्ती होने के लिए लैंसडान जा पहुंचे और 20 अक्टूबर 1913 में गढ़वाल रेजीमेंट की 2/39 बटालियन में बतौर राइफलमैन भर्ती हो गये। उसके तुरंत बाद विश्वयुद्ध शुरू हो गया। दुश्मन की गोलेबारी के कारण बड़ी संख्या मे सैन्य अधिकारी व सैनिक हताहत हुए। इस युद्ध में 250 सैनिक तथा 20 सैन्य अधिकारी बलिदान हुए।

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