India News (इंडिया न्यूज़),Uttarakhand Forest: उत्तराखंड में चीड़ हर साल जंगलों में आग का फैलाव का बड़ा कारण बन रही है। अब इसने अपने पैर अब बांज वनों में भी तेजी से पैर फैलाना शुरू कर दिए हैं। जिसके चलते बांज के जंगलों की जैव विविधता पर मंडराते खतरे को देखकर सरकार भी चौकनी हो चुकी है।
वन मंक्षी सुबोध उनिया के निर्देशों के क्रम में वन विभाग अब बांज जंगलों से चीड़ हटाने की रणनीति बनाने में जुट गया है, जिसे जल्द ही धरातल पर मूर्त रूप दिया जाएगा।
अगर आंकड़ों को देखा जाए तो राज्य में 25863.18 वर्ग किलोमीटर में फैले जंगलों का जिम्मा विशुद्ध रूप से वन विभाग के पास है। इसमें लगभग 16 प्रतिशत हिस्से में चीड़ (चिर पाइन) के जंगल हैं। चीड़ के जंगलों से हर वर्ष 23.66 लाख मीट्रिक टन पत्तियां गिरती हैं, जिन्हें स्थानीय बोली में पिरुल कहा जाता है।
पिरूल में अम्लीय गुण होने के कारण इसे भूमी की उपज के लिए अच्छा नहीं माना जाता। वहीं इसकी परत बिछी होने के कारण बारिश का पानी जमीन में नहीं समा पाता। यही नहीं, गर्मीयों में पिरुल जंगल की आग घी का काम करती है।
जिसको देखते हुए वन विभाग ने साल 2004 से चीड़ का रोपण बंद कर दिया था, लेकिन यह प्राकृतिक रूप से तेजी से पनप रहा है। चीड़ के बीज हवा में उड़कर अन्य जंगलों में पहुंच रहे हैं। पिछले कुछ सालों में चीड़ ने 5 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित बांज (ओक) के जंगलों में भी दस्तक दी है।
कुछ समय पूर्व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी चीड़ के बांज वनों में फैलाव पर चिंता जताई थी, साथ ही इससे निबटने के लिए प्रभावी रणनीति बनाने पर जोर दिया था। वन मंत्री सुबोध उनियाल ने भी विभागीय अधिकारियों को बांज वनों का विस्तृत अध्ययन कर वहां से चीड़ वनों को कैसे हटाया जा सकता है, इसकी कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए थे।