जब किसी की मौत हो जाती है तो मौत के कारणों का पता लगाने के लिए उसके शव का पोस्टमार्टम होता है. पोस्टमार्टम एक सर्जिकल प्रोसेस होती है

 जिसमें शव को चीरकर उसकी अंदरूनी जांच भी की जाती है. पोस्टमार्टम को ऑटोप्सी  और शवपरीक्षा भी कहा जाता है.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मृत्यु के बाद इंसान के शरीर में कई तरह के प्राकृतिक बदलाव होने शुरू हो जाते हैं,

ऐसे में मृत्यु के 6 से 10 घंटे के अंदर पोस्टमार्टम हो जाना चाहिए. क्योंकि ज्यादा देरी होने पर पोस्टमार्टम के नतीजे पर असर पड़ता है.

पोस्टमार्टम में ज्यादा देरी होने पर मौत का सटीक कारण मालूम करना काफी मुश्किल हो जाता है

पोस्टमार्टम करने के लिए कुछ खास मेडिकल औजारों का इस्तेमाल होता है. पोस्टमार्टम के दो मुख्य चरण हैं.

पोस्टमार्टम करने के लिए कुछ खास मेडिकल औजारों का इस्तेमाल होता है. पोस्टमार्टम के दो मुख्य चरण हैं.

पहले में शव की बाहरी जांच की जाती है, जिसके बाद दूसरे चरण में शव की आंतरिक जांच होती है.

पहले में शव की बाहरी जांच की जाती है, जिसके बाद दूसरे चरण में शव की आंतरिक जांच होती है.

रात के समय पोस्टमार्टम नहीं किया जाता है. दरअसल, रात के वक्त प्रकाश के लिए इस्तेमाल होने वाली लाइटों में घाव का रंग बदल जाता है

लाल रंग के घाव बैंगनी रंग के दिखने लगते हैं.  इसके साथ ही रात में पोस्टमार्टम करने की वजह से जांच पर भी बुरा असर पड़ सकता है.

इसलिए रात के समय पोस्टमार्टम नहीं किए जाते हैं.