India News (इंडिया न्यूज़), Space Station: मंगलवार 27 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया है कि साल 2035 तक अंतरिक्ष में भारत का अपना स्पेस स्टेशन होगा। तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में एक सभा को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष यात्री हमारे ही रॉकेट से चंद्रमा की सतह पर उतरेंगे। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि आखिर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन काम कैसे करेगा।
अमेरिका और रूस के स्पेस स्टेशन 1971 से ही अंतरिक्ष में मौजूद हैं। पहला स्पेस स्टेशन रसियन सैल्युट प्रोग्राम, यू.एस. स्काईलैब प्रोग्राम और रसियन मीर प्रोग्राम थे। 1998 से, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, कनाडा, जापान और अन्य देश अर्थ ऑर्विट में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) का निर्माण और संचालन कर रहे हैं। ISS के साथ, मनुष्य 10 वर्षों से अधिक समय से बाहरी अंतरिक्ष में रह रहे हैं और काम कर रहे हैं।
दुनियाभर की कई अंतरिक्ष एजेंसियों ने अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा के साथ मिल कर 1998 इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन बनाने का काम शुरू किया था। पहले चरण में पहला खंड रूसी रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में भेजा गया था। धीरे-धीरे अन्य भागों को भी अंतरिक्ष में पहुंचाया गया और आखिर में इन सभी भागों को मिलाकर एक स्थिर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण किया गया। अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण प्रक्षेपण के दो साल के अंदर पूरा हो गया। 2 नवंबर 2000 को पहली बार अंतरिक्ष वैज्ञानिक भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचे।
स्पेस स्टेशन पहिए जैसे आकार की होते हैं। जो घूमकर स्टेशन में आर्टिफिशियल ग्रेविटी पैदा करती है। जैसा कि बाकि स्टेशनों में होता है कि कोई ट्रेन, जहाज स्टेशन पर रुक कर लोगों और सामानों को लाने और ले जाने का काम करता है। वैसे ही पृथवी से रॉकेट यहां से लोगों, खानेे और अन्य चीजों को स्पेस स्टेशन तक ले जाते हैं।
स्पेस स्टेशन का आकार पांच बेडरूम वाले घर या दो बोइंग 747 जेटलाइनर जितना होता है। यह छह लोगों क्रू और कुछ विजिटर्स के रुकने की व्यवस्था कर सकता है।। पृथ्वी पर, स्पेस स्टेशन का वजन लगभग दस लाख पाउंड होगा। ISS में संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, जापान और यूरोप के प्रयोगशाला मॉड्यूल शामिल हैं।
स्पेस स्टेशन ने लोगों के लिए अंतरिक्ष में निरंतर उपस्थिति को संभव बना दिया है। पहले दल के आने के बाद से मनुष्य हर दिन अंतरिक्ष में रह रहा है। अंतरिक्ष स्टेशन की प्रयोगशालाएं चालक दल के सदस्यों को वह शोध करने की अनुमति देती हैं जो कहीं और नहीं किया जा सकता है। इस वैज्ञानिक शोध से पृथ्वी पर लोगों को लाभ होता है। स्पेस रिसर्च का उपयोग रोजमर्रा की जिंदगी में भी किया जाता है।
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