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Story Of Param Vir Chakra Winner : परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव की कहानी उन्हीं की जुबानी

• LAST UPDATED : August 15, 2023

India News (इंडिया न्यूज़), Pankaj Gupta, Meerut : देशभर में स्वतंत्रता दिवस को लेकर इन दिनों देशभक्ति का माहौल है। इस मौक़े पर मेरठ पहुंचे परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव से इंडिया न्यूज ने खास बातचीत की। इस मौक़े पर उन्होंने तमाम विषयों पर मुखर होकर अपनी बात कही। देखें इस ख़ास मौक़े पर परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र से खास बातचीत के प्रमुख अंश-

देश के सबसे कम उम्र में उच्चतम भारतीय सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित

योगेन्द्र यादव देश के सबसे कम उम्र में उच्चतम भारतीय सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले शख्स हैं। मात्र 19 वर्ष की आयु में उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। मेरठ में इंडिया न्यूज से उन्होंने खास बातचीत की। उन्होंने बताया की आजादी के मायने एक सैनिक के लिए बहुत खास होते हैं। देश की आजादी के लिए लाखों वीरों और वीरांगनाओं ने शहादत दी है तब जाकर हमें आजादी मिली है। आज आजादी के माहौल में सांस ले पा रहे हैं। ऐसे वीरों को नमन करने का दिन है जो दिन रात देश की सेवा में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं। ये आजादी ऐसे ही नहीं मिली हमनें बहुत जुल्म सहे हैं।

‘व्यक्तिगत पहचान से ज्यादा राष्ट्र की पहचान बनाए रखना बेहद जरूरी’

वह कहते हैं कि जो तिरंगे के तीन रंग हम देखते हैं ये हमारी आन, बान और शान हैं। ये हर इंसान के घरों में, दिलों में बसना चाहिए। ज़ब हम राष्ट्र को सर्वप्रथम रखकर हम अपने जीवन का निर्वाह करेंगे, अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ेंगे तो तब जाकर इस राष्ट्र को हम और भी उंची बुलंदियों पर ले जा सकते हैं। वह कहते हैं कि हर भारतवासी को आजादी को रक्षित करने का संकल्प लेना चाहिए।

योगेंद्र यादव कहते हैं कि हम चाहे जिस भी क्षेत्र में क्यों न हों हमें ध्यान देना चाहिए कि व्यक्तिगत पहचान से ज्यादा राष्ट्र की पहचान बनाए रखना बेहद जरूरी है। हमारा दायित्व बनता है कि हम राष्ट्र को कुछ दें।

भारत में जन्म लेना सौभाग्यशाली

कारगिल वार को लेकर भी योगेंद्र यादव ने अपने विचार साझा किये। उन्होंने कहा कि कारगिल वार ऐसी परिस्थियों में लड़ा गया था जहां जीवन यापन करना भी असम्भव था। माइनस 20 डिग्री तापमान में उंची पहाड़ियों पर बैठे दुश्मन का जोश जुनून और जज्बे के साथ खत्म किया था। वह कहते हैं कि हर भारतवासी सौभाग्यशाली है कि भारत में जन्म लिया है।

बता दें कि कारगिल युद्ध के दौरान 19 साल के योगेंद्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर में तैनात थे। कारगिल के तोलोलिंग पहाड़ी पर पाकिस्तानियों ने कब्जा जमा लिया था। उसे छुड़ाने का जिम्मा बारी-बारी कई टीमों ने संभाला था, जिनको पहाड़ की चोटी पर बैठे पाकिस्तानियों ने निशाना बना डाला। 20 मई को तोलोलिंग पर कब्जा करने का अभियान शुरू हुआ। 22 दिन की लड़ाई में नायब सूबेदार लालचंद, सूबेदार रणवीर सिंह, मेजर राजेश अधिकारी और लेफ्टिनेंट कर्नल आर. विश्वनाथन की टीमों ने बारी-बारी धावा बोला था। मगर यह प्रयास असफल रहा।

तोलोलिंग फतेह के बाद जीत का सिलसिला शुरू हुआ

उसके बाद 12 जून 1999 को 18 ग्रेनेडियर और सेकंड राइफल ने अटैक किया। योगेंद्र सिंह यादव इस टीम का हिस्सा बने। गजब की जंग हुई और तोलोलिंग फतेह के बाद जीत का सिलसिला शुरू हो गया। 13 जून को इस टीम ने 8 चोटियों पर कब्जा किया। आदेश के बाद उनकी टीम वापस लौट गई फिर आगे की लड़ाई का जिम्मा संभाला जम्मू कश्मीर राइफल ने, जिसको विक्रम बत्रा लीड कर रहे थे।

शारीरिक क्षमता को देखते हुए उन्हें घातक प्लाटून में मिली थी जगह

योगेंद्र बताते हैं कि तोलोलिंग फतह के दौरान घातक प्लाटून के कई जवान शहीद हो गए थे। इसलिए जब 17 हजार फुट ऊंचे टाइगर हिल को छुड़ाने की प्लानिंग शुरू हुई तो बेहतर योद्धाओं की तलाश हुई। तोलोलिंग पर जीत के बाद योगेंद्र सिंह यादव और उनके तीन साथियों को लड़ाई लड़ रहे सैनिकों तक राशन पहुंचाने का जिम्मा सौंपा गया था। इसके लिए उन्हें घंटों पैदल चलना होता था। उनकी शारीरिक क्षमता को देखते हुए उन्हें घातक प्लाटून में जगह मिल गई।

पहले दो रात और एक दिन की चढ़ाई और फिर लड़ाई। फिर बारी आई टाइगर हिल फतेह करने की, दो रात और एक दिन कठिन चढ़ाई के बाद सात जवान तीसरी रात टाइगर हिल पर चढ़ गए और वहां मौजूद दुश्मनों को खत्म कर बंकर पर कब्जा कर लिया। मगर दूसरी पहाड़ी के दुश्मनों ने पांच घंटे तक ताबड़तोड़ गोलाबारी की। 15 गोली लगने के बाद भी योगेंद्र की सांसें चल रही थीं। ऐसी हालत में भी उन्होंने एक ग्रेनेड पाकिस्तानियों की ओर फेंका, ग्रेनेड ने अपना काम कर दिया। कई पाकिस्तानी मारे गए। टाइगर हिल दुश्मनों के कब्जों से मुक्त हो चुका था। गंभीर रूप से जख्मी होने बाद भी योगेंद्र ने हिम्मत दिखाई और घिसटते हुए बेस कैंप पहुंचे। उनकी इस बहादुरी के बाद करगिल में लड़ाई का रुख बदल गया।

अग्निवीर योजना को लेकर कहा-

सरकार की अग्निवीर योजना को लेकर उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि इसका मकसद यह था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को ट्रेंड किया जा सके और उन्हें रोजगार दिया जा सके। वह कहते हैं कि लेकिन मैं सरकार से यहां निवेदन भी करना चाहूंगा कि जब वह 4 साल के बाद वापस आते हैं तो ट्रेंड मेनपावर को ऐसा ही न छोडें। पैरामिलिट्री फोर्सेस और स्टेट पुलिस के अंदर इन लोगों को शामिल किया जाए। देश का कौशल देश की ताकत देश के उपयोग में लाई जाए।

अखिलेश यादव ने उनके क्षेत्र में 100 बेड का अस्पताल बनाने की, की थी घोषणा

बातचीत के दौरान परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव का दर्द भी छलक उठा। उन्होंने कहा कि जब अखिलेश यादव की यूपी में सरकार थी। उस वक्त अखिलेश यादव ने उनके क्षेत्र में 100 बेड का अस्पताल बनाने के लिए घोषणा की थी। जिससे उन्हें लगा था कि कम से कम एक लाख आबादी के लिए यह घोषणा काफी बड़ी मदद होगी। उन्होंने कहा कि लेकिन सरकार बदली और उसके बाद अब योगी जी ने उसे बदल दिया। वह कहते हैं कि पीएचसी बनाने से क्षेत्र में किसी का कोई भला होने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि 100 बेड के अस्पताल की क्षेत्र में बहुत ज्यादा जरूरत थी, क्योंकि उनके क्षेत्र में कोई बड़ा हॉस्पिटल न होने की वजह से काफी बार ऐसा हुआ है कि दिल्ली, मेरठ या नोएडा गाजियाबाद पहुंचते पहुंचते ही पीड़ित मरीजों को मरते हुए देखा है।

गौरतलब है कि बुलंदशहर जिले के गांव औरंगाबाद अहीर के मूल निवासी कारगिल के युद्ध के हीरो परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव से जुलाई 2016 में मुलाक़ात के दौरान अखिलेश यादव ने गांव में 100 बेड का हॉस्पिटल शीघ्र स्थापित करने का भरोसा दिया था।

गौरतलब है कि योगेंद्र यादव ने 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन विजय में टाइगर हिल पर फतेह हासिल की थी, जिसके लिए देश का उच्चतम भारतीय सैन्य सम्मान इस शूरवीर को मिला था। योगेंद्र यादव से भेंट के दौरान पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने योद्धा के गांव को ‘आई स्पर्श योजना’ के तहत स्मार्ट गांव बनाने की बात भी कही थी लेकिन सरकार बदली सब बदल गया।

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