India News (इंडिया न्यूज़), Baba Neem Karoli: भारत एक ऐसा देश है, जहां साधु-संतों को भगवान से कम नहीं माना जाता। इसी तरह देश में कई ऐसे संत-महात्मा है, जिन्हें लोग भगवान की तरह पूजते है। इन्हीं में से 1 संत बाबा नीम करौली भी हुए, जिनके पुरी दुनिया में भक्त हैं। बाबा नीम करौली का बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था, लेकिन एक चमत्कार के बाद उन्हें बाबा नीम करौली के नाम से जाना जाने लगा। आखिर वो चम्तकार था क्या?
बाबा नीम करौली का जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में साल 1900 में हुआ था। उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। 11 वर्ष की उम्र में बाबा नीम करौली की शादी उनके माता-पिता ने करा दी थी। कुछ समय बीतने के बाद लक्ष्मण नारायण शर्मा का मन विरक्ति में लग गया। उन्होनें साधु बनने के लिए वर्ष 1958 में घर छोड़ दिया। जिसके बाद उनके माता-पिता के काफी मनाने के बाद वे एक व्यवस्थित विवाहित जीवन जीने के लिए घर लौट आए। जिसके बाद उनके 2 बेटे और 1 बेटी हुई।
बाबा नीम करौली की ट्रेन की कहानी बेहद लोकप्रिय है। इस बात का जिक्र लेखक राम दास की किताब ‘Miracle Of Love’ में भी किया गया है। रामदास ने किताब में लिखा है कि 1 दिन बाबा लक्ष्मण नारायण शर्मा बिना टिकट के ट्रेन में चढ़ गए थे। जिस पर टीटी ने ट्रेन को रोकने और नीम करोली बाबा को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के नीम करोली गांव में ट्रेन से उतरने को कहा बाबा को ट्रेन से उतार दिया गया। जिसके बाद ट्रेन वहां से हिली ही नहीं काफी कोशिश की गई लेकिन ट्रेन नहीं चल सकी।
जब बाबा को ट्रेन से उतार दिया गया तो ट्रेन चालू करने के कई बार कोशिश की है गई, किंतु उसके बाद भी ट्रेन ना चल सका। जिसके बाद रेलवे के अधिकारियों ने पूरे मामले की जांच की तो टीटी ने पूरी बात बताई। इसके बाद बाबा को खोजा गया और अधिकारियों ने कहा कि बाबा को ट्रेन में सवार होने दें। इसके बाद अधिकारियों ने नीम करोली बाबा से ट्रेन में बैठने की गुहार लगाई।
जब रेलवे अधिकारियों ने वालों को खूब बनाया तो वह भी मान गए, और हंसते हुए में ट्रेन में चढ़ गए। बाबा जैसे ही ट्रेन में चढ़े तो ट्रेन शुरू हो गई। लेकिन पायलट तब तक ट्रेन को आगे नहीं बढ़ा सके जब तक बाबा ने उन्हें आगे बढ़ने का आशीर्वाद नहीं दिया।
बाबा ने जब आशीर्वाद दिया तो ट्रेन चल पड़ी। जिसके बाद बाबा की शर्त के अनुसार रेलवे ने फर्रुखाबाद बाद के नीम करोली गांव में 1 स्टेशन बनवाया गया। बाबा कुछ समय तक नीम करोली गांव में ही रहे और यहीं से उन्हें नीम करोली बाबा के नाम से जाना जाने लगा।
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