India News (इंडिया न्यूज़)UP,Kubja: भगवान श्री कृष्ण का नाम ही इतना मनमोहक है कि इसके जुबान पर आते ही इंसान अपने समस्त दुख और दर्द भूल कर उनकी लुभावने सूरत को याद करने लगता है। अगर हिंदू धर्म ग्रंथो की बात की जाए तो इसमें उनके स्वरूप का वर्णन उपरोक्त लिखी बात बहुत अच्छे से प्रमाण मिलता है। सिर्फ यही कारण है की बचपन से ही भगवान श्री कृष्णा सबके प्रिय थे। गोकुल की गोपियों से लेकर वहां की ब्रिज क्रिया भी भगवान कृष्ण की दीवानी थी।
कायदे से देखा जाए तो भगवान श्री कृष्ण की एक मां देविका थी तो दूसरी यशोदा। परंतु गोकुल में अन्य रहने वाली ब्रिज महिलाएं भी उन्हें पुत्र की तरह ही मानती थी। इतना ही नहीं श्री कृष्णा अपने जीवन काल में जहां-जहां रहे उन्हें सबने प्रेम और स्नेह दिया। आज हम आपको एक ऐसी स्त्री के बारे में बताने जा रहे हैं जो भगवान श्री कृष्ण से प्रेम करती थी और इसका वर्णन पौराणिक कथाओं में अच्छे से मिलता है।
जी हां आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कब्जा कंस की नगरी मथुरा में रहने वाली कंस की दासी थी। वेद नृत्य कंस के लिए चंदन, तिलक और फूल लेकर जाती थी। अपने लिए इतना प्यार और श्रद्धा देखकर कंस भी कुब्जा पर बहुत प्रसन्न रहता था। ऐसा कहा जाता है की कुब्जा को बहुत कम लोग जानते थे उनके कुबेर होने के कारण ही उन्हें कुब्जा नाम दिया गया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार कंस के वध के दौरान श्री कृष्ण कुब्जा से मुलाकात हुई थी। जिसके बाद उनके यानी कब्ज के साथ उनकी प्रेम- क्रीड़ाए भी शुरू हुई।
बहुत समय पहले की बात है भगवान श्रीकृष्ण ने एक कुबड़ी स्त्री को बहुत प्रसन्न मन से हाथ में चंदन, फूल, हार आदि ले जाते हुए देखा। तब श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा, “आप कहां जा रहे हैं और इस चंदन का लेप, हार और फूलों को इस तरह दिखाने वाले आप कौन हैं? तो कुब्जा ने श्रीकृष्ण के प्रश्न का उत्तर दिया “मैं कंस की दासी हूँ। मेरे कुबड़ेपन के कारण सब लोग मुझे कुब्झा कहते हैं।”
मैं यह चंदन, पुष्प हार आदि लेकर जा रहा हूं।’ मेरे राजा कंस को मैं ऐसा नियमित रूप से करती हूं और उन्हें वह सभी सामग्री उपलब्ध कराती हूं जिससे वे मेकअप आदि करती हैं। जब श्रीकृष्ण ने यह सुना तो कुब्जा से कहने लगे कि यह चंदन हमें दो और ये फूल और हार हमें दे दो। कुब्जा ने साफ़ मना कर दिया और बोली। “नहीं, यह केवल मेरे राजा कंस के लिए है।”
इसे दूसरों को नहीं दिया जा सकता। कहानी के मुताबिक पास खड़े लोगों ने बातचीत सुनी और देखी। सबने मन में सोचा कि यह स्थान कितना अशिक्षित है। भगवान उसके सामने खड़े हैं, लेकिन वह उसके अनुरोध को अस्वीकार कर देता है। वहां हर कोई आश्चर्यचकित था कि क्या कोब्जा इतना भाग्यशाली अवसर चूक जाएगा। जीवन में खुश रहने का ऐसा मौका बहुत कम लोगों को मिलता है। और वह श्री कृष्ण को पापी कंस को माला और चंदन चढ़ाने के लिए छोड़ देती है।
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लेकिन उसके सामने कुबड़े का क्या दोष? उसने वही किया जो उसके दिमाग में छिपी वृत्ति ने उससे माँग की थी। लेकिन अब श्रीकृष्ण भी जिद पर अड़ गए और उनसे बार-बार पूछने लगे। आख़िरकार वह कुब्जा को मनाने में कामयाब रही और कुब्जा उनके मेकअप करने के लिए तैयार हो गई। लेकिन कुबड़ी होने के कारण वह भगवान के माथे पर तिलक नहीं लगा सकती थी। कुबजी की दुर्दशा देखकर श्रीकृष्ण ने अपने दोनों पैरों की अंगुलियों से उस पर दबाव डाला, हाथ ऊपर किए और उसकी ठुड्डी ऊपर उठाई और कुबड़ी कुबजा ठीक हो गई।
इसके बाद कुब्जा श्रीकृष्ण के माथे पर तिलक लगाने में सफल हो गई। कुब्जा के बार-बार निमंत्रण पर कृष्ण ने उससे विदा ली और उसके घर जाने का वादा किया।
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