India News UP (इंडिया न्यूज) Mahashivratri : आज महाशिवरात्रि का त्योहार है। दुनिया भर में शिव विवाह के इस दिन को जोर शोर से मनाया जा रहा है। ऐसे में लोगों के मन में महादेव से जुड़ी ऐसी पौराणिक बातें जिनके बारे में बेहद कम बातें हुईं या छापी गईं वो आ ही जाती हैं। खास दिन पर खास बातें जानना, हम भारतीयों की आदत है।
आज हम भगवान शिव और हनुमान जी से जुड़ा एक रोचक किस्सा आपको बताने जा रहे हैं। एक किस्सा जहां एक पिता ने अपने पुत्र के बाहुबल की परीक्षा ली, एक गुरु ने उनके शिष्य की युद्धकला की परीक्षा ली। ये लीला महादेव ने रच तो डाली लेकिन उसका परिणाम इतना भयंकर था कि तीनों लोक कांप उठे। पुराणों में कहा गया है कि बस यही एक युद्ध है जो हनुमान जी हार गए थे वरना संसार में हनुमान को हराने की क्षमता ना किसी देव में थी ना दानव में।
बात त्रेता युग की है जब भगवान राम रावण को हराकर माता सीता के साथ अयोध्या लौट आए। उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ का अयोजन करवाया। अश्वमेघ यज्ञ का मलतब होता था कि राजा का चक्रव्रति हो जाना। एक घोड़ा छोड़ा जाता वो घोड़ा जहां जहां जाता उस राज्य या जगह पर अश्वमेघ यज्ञ करवाने वाला राजा का राज हो जाता। यदि किसी को आपत्ति होती तो वे यज्ञ करवाने वाले राजा से युद्ध करते। युद्ध भी बड़े नियम के साथ आज कल की तरह साइबर अटैक नहीं।
Also Read: Mahashivratri 2024: जानिए भगवान शिव की छाती पर क्यों रखा था “मां काली” ने पैर? हैरान कर देगी वजह
तो राम जी ने भी घोड़ा छोड़ा उस घोड़े की रक्षा के लिए भगवान राम के भाई भरत, सेवक हनुमान सहित पूरी राम सेना साथ साथ चली। वो घोड़ा चलते चलते देवपुर पहुंचा। अब देवपुर में था राजा वीरमणि का राज। राजा वीरमणी स्वभाव से घमंडी थे और घमंड का एक कारण भी था। जी हां जिनके एक इशारे पर पूरा संसार नष्ट हो जाए ऐसे महादेव ने स्वयं वीरमणि को रक्षा का वचन दे रखा था।
अपने घमंड में चूर चूर वीरमणि ने भगवान राम का घोड़ा रोक लिया। युद्ध शुरू हुआ। महाबली हनुमान को जरा भी समय नहीं लगा राजा वीरमणि की पूरी की पूरी सेना को हराने में। अंत में वही हुआ जिसका भगवान राम और माता सीता को डर था। राजा वीरमणि ने महादेव का आह्वान किया। अब जैसा कि नियती है महादेव को पुकारने पर सबसे पहले नंदी मदद को आते हैं। नंदी वहां आए, चूंकि राजा वीरमणि की सुरक्षा का वचन स्वयं महादेव ने दिया हुआ था तो नंदी ने भगवान राम की सेना पर प्रहार करना शुरू कर दिया जिससे भगवान राम की सेना में भगदड़ मच गई।
अब नंदी भी हनुमान जी के लिए गुरु समान थे, बजरंग बली को बचपन में उन्होंने गोद में खिलाया। इसलिए हनुमान ने पहले नंदी से विनती की लेकिन वचनबद्ध नंदी पीछे नहीं हटे। दोनों में युद्ध हुआ जिसमें नंदी हार गए। नंदी के बाद वीरभद्र आए। वीरभद्र से हनुमान का युद्ध हुआ जिसमें पहले तो वीरभद्र जीते लेकिन हनुमान ने दैविक शक्तियों का प्रयोग करके वीरभद्र को हरा दिया।
वीरभद्र के हारने पर स्वयं महादेव युद्ध स्थल पर आए। महादेव के आते ही जितने लोग घायल पड़े हुए थे राम सेना और वीरमणि सेना के सब के सब ठीक हो गए। महादेव ने आकर पहले योगीरूप में हनुमान से कहा कि वे पीछे हट जाएं और वीरमणि की विजय स्वीकार करें। राम काज होने की वजह से हनुमान भी पीछे नहीं हटे। ऐसे में युद्ध के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा। महादेव और हनुमान के बीच जैसे ही युद्ध हुआ संसार में विनाश होना शुरू हो गया चूंकि महादेव का अपने ही अंश पर प्रहार करना मतलब प्रकृति पर प्रहार करना। महादेव ने सबसे पहले नागअस्त्र से हनुमान पर प्रहार किया जिससे हनुमान बेहोश हुए लेकिन वरदान के कारण फिर से ठीक हो गए।
महादेव अपने पुत्र की परीक्षा लेते जा रहे थे जिससे हनुमान लगातार कमजोर पड़ते जा रहे थे। यह देखकर भरत ने महादेव पर ब्रह्मास्त्र चला दिया। महादेव पर ब्रह्मास्त्र चलता देख भगवान राम भी युद्ध भूमि में आ गए। ब्रह्मास्त्र को लेकर पुराणों में कहा गया यदि एक बार ब्रह्मास्त्र छूटा तो फिर वापस नहीं हो सकता। हनुमान ने महादेव की ब्रह्मास्त्र आता देखा तो खुद ब्रह्मास्त्र के सामने खड़े हो गए लेकिन महादेव उन्हें धक्का देकर हटा दिया और ब्रह्मास्त्र को निगल गए। अब ब्रह्मास्त्र का विस्फोट हुआ और समस्त संसार ने महादेव विकराल रूप के दर्शन किए। भोलेनाथ का ये क्रोधित रूप देखकर भरत क्षमा मांगने लगे , हनुमान और भगवान राम की विनती पर महादेव का क्रोध शांत हुआ लेकिन वे युद्ध से पीछे नहीं हटे।
Also Read: Mahashivratri: ये 5 गलत काम करने वालों को माफ नहीं करते महादेव, कर देते हैं उनका विनाश
उन्होंने हनुमान को युद्ध करने आदेश दिया। इस पर दोनों के बीच मल्ल युद्ध हुआ। जिसमें महादेव हनुमान के साथ खेल जैसा खेलने लगे। उन्होंने हनुमान को विवश कर दिया कि हनुमान महादेव पर अपनी पूरी शक्ति से प्रहार करें। हनुमान ने जब देखा कि अब महादेव रुकने वाले नहीं तो उन्होंने अपनी पूरी शक्ति से महादेव की छाती पर प्रहार किया जिसके बाद महादेव योग मुद्रा में आ गए। हनुमान जी हाथ जोड़कर उनके पैरों में गिर गए और अपने अंत की मांग करने लगे।
महादेव हनुमान के प्रहार से क्रोधित नहीं बल्कि प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि हे हनुमान मैंने जो तुमको सिखाया तुम्हें भली भांति याद है। मैं प्रसन्न हुआ। इसके बाद भोलेनाथ ने हनुमान को वरदान दिया कि मल्ल युद्ध यानी कि कुश्ती में कोई भी संसार में उनसे बड़ा योद्धा नहीं होगा।
ये सब वीरमणि देख रहा था। उसने महादेव से कहा कि वे हनुमान के साथ खेल रहे हैं और अपना वचन नहीं निभा रहे हैं। महादेव भी देख रहे थे कि उनके वरदान का वीरमणि गलत प्रयोग कर रहा है। महादेव ने फिर हनुमान को युद्ध के लिए ललकारा और इस बार अपना त्रिशूल हनुमान पर छोड़ दिया। भगवान शिव के त्रिशूल को लेकर हर पुराण और ग्रंथ में लिखा है कि शिव का त्रिशूल जिस पर चला उसे कोई वरदान भी नहीं बचा सकता।
वहीं, मां आदिशक्ति भी इस युद्ध को कैलाश से देख रही थीं। हनुमान पर महादेव के त्रिशूल से वार होने का मतलब था प्रकृति का विनाश इसलिए उन्होंने खुद युद्ध स्थल पर आकर त्रिशूल को रोक लिया चूंकि महादेव के प्रहार को रोकने की क्षमता केवल उनकी पत्नी आदिशक्ति में है। इसके बाद हनुमान, भगवान राम और माता आदिशक्ति सबने मिलकर महादेव से युद्ध रोकने की विनती की और महादेव के मंत्रों का जाप किया। माता के आगमन से वीरमणि की आंखों ने सच्चाई देख ली। उसे हनुमान का असली रूप दिखा उसने देखा हनुमान तो स्वयं महादेव हैं। उसने यह देखकर भगवान राम और हनुमान से क्षमा मांगी।
महादेव ने भी हनुमान की प्रशंसा करते हुए युद्ध रोकने की घोषणा की। महादेव ने स्वयं हनुमान से कहा कि वे इस युद्ध में केवल बजरंगबली की परीक्षा ले रहे थे। Mahashivratri पर हमारी ये पौराणिक कहानी आपको अच्छी लगी हो तो इस स्टोरी को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें।