Sunday, July 7, 2024
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Mauni Amavasya 2024: मौनी अमावस्या व्रत क्या है, जानें पूजा विधि और कथा

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India News (इंडिया न्यूज़), Mauni Amavasya 2024: हिन्दू धर्म में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व माना जाता है। यह मुख्य रूप से माघ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन मनु ऋषि का जन्म हुआ था। साथ ही इस दिन गंगा के जल में देवी देवताओं का वास होता है, इस वजह से मौनी अमावस्या के दिन गंगाजल में स्नान करना बहुत ही शुभ माना जाता है।

मौनी अमावस्या की पूजा-विधि

मान्यता के अनुसार, मौनी अमावस्या के दिन स्नान के बाद दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन गंगाजल में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना आवश्यक होता है। अगर आप किसी पवित्र नदी में स्नान के लिए नहीं जा पाए हैं, तो पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करने के बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करें। इसके बाद अपनी क्षमता के हिसाब से दान करें।

इस वजह से रखा जाता है मौन व्रत

मौनी अमावस्या के दिन लोग मौन रहकर पूरा दिन बिताते है। शास्त्रों के अनुसार, यह चन्द्रमा को मन का देवता माना गया है और अमावस के समय चन्द्रमा के दर्शन नहीं होते, जिसके चलते मनुष्य के मन की स्थिति बिगड़ने लगती है। इसलिए मौनी अमावस के दिन चुप रहकर यानि मौन धारण कर मन की स्थिति को संभालने की कोशिश की जाती है और मन में ईश्वर का जाप करके दान का पुण्य प्राप्त किया जाता है।

मौनी अमावस्या व्रत की कथा

मौनी अमावस्या के दिन यह कथा सुनने अथवा सुनाने का प्रचलन माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार यह बताया जाता है कि कांचीपुर की एक कन्या जब विवाह के योग्य हो गई थी तब उसके पिता ने पंडित को उसकी कुंडली दिखाई। पंडित ने कुंडली में वैधव्य दोष बताया। इसके बारे में बताने के साथ ही पंडित जी ने दोष से बचने का रास्ता भी बताया। उनके कहे अनुसार कन्या सिंहल द्वीप के पास रहने वाले धोबी का आशीर्वाद लेने पहुंची। जिस पेड़ के नीचे बैठकर दोनों सागर के बीच पहुंचने का रास्ता ढूढ़ रहे थे उस पर एक गिद्ध का घोंसला था तो गिद्ध के बच्चों को दोनों भाई-बहन ने पूरी बात बताई।

उनके यहां आने का वजह जानकर गिद्ध के माता-पिता ने उन दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर सिंहल द्वीप ले गए। वहां जाकर कन्या ने सोमा को अपनी सेवा से प्रसन्न कर दिया। जब सोमा को उसके वैधव्य दोष के बारे में पता चला तो उसने अपना सिंदूर दान कर अखंड सौभाग्यवती का वरदान दिया। जिस दिन उस कन्या का विवाह हुआ वह मौनी अमावस का ही दिन था। तभी से माना जाता है मौनी अमावस्या महाव्रत की शुरुआत हुई।

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