इंडिया न्यूज, लखनऊ।
Shab e Barat Worship Allah in Mosques : शब-ए-बारात यह वो रात है जब मालिक की रहमत बरसती है। इस रात में जो भी मालिक की इबादत करता है या अपने गुनाहों की माफी मांगता है तो उसे गुनाहों से माफी मिल जाती है। मुस्लिम समुदाय के लिए शब-ए-बारात (Shab-e-barat) एक प्रमुख त्योहार है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार शब-ए-बारात का त्योहार शाबान महीने की 14वीं तारीख और 15वीं तारीख के मध्य रात को मनाया जाता है। जबकि अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार 18 मार्च को सूर्यास्त से शुरू होकर 19 मार्च सुबह अजान के समय तक शब-ए-बारात मनाया जाएगा।
लोग अल्लाह की करते हैं इबादत (Shab e Barat Worship Allah in Mosques)
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार शब-ए-बारात में लोग अल्लाह की इबादत करते हैं और उनसे अपने गुनाहों को माफ करने की दुआ मांगते हैं। इस्लाम के जानकार मानते हैं कि शब-ए-बारात पवित्र दिन है। इस दिन सभी मुस्लिम भाई कब्रिस्तान में जाकर अपने पूर्वजों के लिए रात में कुरान पढ़ें या इबादत करें जिससे मालिक की रहमत बरसेगी और गुनाहों से माफी मिलेगी। रात को अपनी कमाई का हिस्सा गरीबों को दें। इस रात को हो सके तो पैदल चलें, मोटरसाइकिल और गाड़ी नहीं चलाएं।
शब-ए-बारात का क्या है अर्थ (Shab e Barat Worship Allah in Mosques)
हिजरी कैलेंडर के अनुसार शब-ए-बारात की रात हर साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है। शब-ए-बारात का अर्थ है शब यानी रात और बारात यानी बरी होना। शब-ए-बारात का रात को इस दुनिया को छोड़कर जाने वाले अपने पूर्वजों की कब्रों में रोशनी और उनके लिए दुआ मांगी जाती है। इस दिन जो भी सच्चे मन से अल्लाह से अपने गुनाहों के लिए माफी मांगते हैं अल्लाह उनके लिए जन्नत के दरवाजे खोल देता है।
(Shab e Barat Worship Allah in Mosques)